अंटार्कटिका में तेजी से पिघलती बर्फ के कारण दुनिया की सबसे शक्तिशाली महासागरीय धारा—अंटार्कटिक सर्कंपोलर करंट (ACC)—धीमी होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका प्रभाव पूरी वैश्विक जलवायु प्रणाली पर पड़ेगा, जिससे मौसम पैटर्न, समुद्र का स्तर और समुद्री पारिस्थितिकी प्रभावित होगी।
कैसे प्रभावित होगी महासागरीय धारा?
अंटार्कटिका के चारों ओर बहने वाली यह धारा दक्षिणी महासागर को घेरती है और पूरे ग्रह की जलवायु को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिक बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे मीठे पानी की मात्रा महासागर में बढ़ रही है। यह पानी ACC को कमजोर कर सकता है, जिससे महासागरों में गर्मी और पोषक तत्वों के वितरण में बाधा आएगी।
वैश्विक प्रभाव: जलवायु परिवर्तन और मौसम चक्र
मौसम परिवर्तन: ACC के धीमे होने से वैश्विक मौसम पैटर्न में अस्थिरता आ सकती है, जिससे चरम मौसम की घटनाएं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान बढ़ सकते हैं।
समुद्री पारिस्थितिकी पर असर: यह धारा दुनिया के महासागरों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के प्रवाह को बनाए रखने में मदद करती है। इसके कमजोर होने से समुद्री जीवों और मत्स्य उद्योग को भारी नुकसान हो सकता है।
समुद्र स्तर में वृद्धि: यदि अंटार्कटिका की बर्फ इसी गति से पिघलती रही, तो वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि होगी, जिससे तटीय शहरों और द्वीप देशों पर गंभीर खतरा मंडराएगा।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
हाल ही में प्रकाशित शोधों में चेतावनी दी गई है कि यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगाई गई, तो आने वाले दशकों में ACC की गति और अधिक धीमी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस संकट से बचने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करना और सतत विकास की दिशा में ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।
निष्कर्ष
अंटार्कटिक महासागरीय धारा का धीमा होना सिर्फ दक्षिणी ध्रुव की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे ग्रह के लिए खतरे की घंटी है। यदि समय रहते इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया, तो इसके परिणाम वैश्विक जलवायु और मानवीय जीवन के लिए गंभीर साबित हो सकते हैं।
