
नई दिल्ली, 6 मार्च 2025: हाल ही में दक्षिण प्रशांत महासागर में एक बड़ा अंतरिक्ष मलबा गिरने की खबर आई है, जिससे एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि अगर अंतरिक्ष से गिरने वाला कोई मलबा किसी नुकसान का कारण बनता है, तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी?
क्या कहते हैं अंतरराष्ट्रीय नियम?
संयुक्त राष्ट्र के “स्पेस लाइबिलिटी कन्वेंशन 1972” के अनुसार, अगर किसी देश का उपग्रह, रॉकेट या अन्य अंतरिक्ष मलबा किसी अन्य देश में गिरता है और जान-माल की हानि होती है, तो उस देश की सरकार ज़िम्मेदार होती है, जिसने वह वस्तु लॉन्च की थी।
हालिया घटनाएं और बढ़ती चिंताएं
पिछले कुछ वर्षों में कई बार अंतरिक्ष मलबा धरती पर गिर चुका है। 2021 में चीन के लॉन्ग मार्च 5बी रॉकेट का मलबा हिंद महासागर में गिरा था, जिससे वैश्विक बहस छिड़ गई थी। इसी तरह, 2023 में भारत के महाराष्ट्र में भी एक धातु का टुकड़ा गिरा था, जिसे किसी उपग्रह का हिस्सा माना गया था।
भविष्य के लिए क्या कदम उठाने होंगे?
विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरिक्ष एजेंसियों को ऐसी तकनीक विकसित करनी चाहिए, जिससे रॉकेट और उपग्रह नियंत्रित तरीके से पृथ्वी पर वापस लाए जा सकें। इसके अलावा, सभी देशों को मिलकर एक सख्त वैश्विक नीति बनानी होगी, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष मलबे से होने वाले खतरों को रोका जा सके।
निष्कर्ष
अंतरिक्ष अन्वेषण के बढ़ते कदमों के साथ यह ज़रूरी हो गया है कि हम केवल नए मिशन पर ध्यान न दें, बल्कि पुराने और निष्क्रिय हो चुके उपग्रहों व रॉकेटों के सुरक्षित निपटान की भी योजना बनाएं। वरना आने वाले वर्षों में यह समस्या और विकरा
ल रूप ले सकती है।
