
ओटावा: कनाडा में राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है। मार्क कार्नी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है, जिससे जस्टिन ट्रूडो का युग समाप्त हो गया। नई सरकार के समक्ष कई अहम मुद्दे हैं, लेकिन खालिस्तान विवाद सबसे गंभीर चुनौती के रूप में उभर रहा है।
ट्रूडो की विदाई और कार्नी की एंट्री
लंबे समय तक सत्ता में रहे जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता हाल के वर्षों में घटी, जिससे विपक्षी दलों और जनता के दबाव में उन्होंने इस्तीफा दिया। उनकी नीतियों को लेकर देश में मतभेद बढ़ते गए, खासकर भारत के साथ रिश्तों में तनाव और खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को लेकर। अब मार्क कार्नी के सामने इन समस्याओं से निपटने की जिम्मेदारी होगी।
खालिस्तान मुद्दे पर नई सरकार की नीति
कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की बढ़ती गतिविधियां भारत के साथ उसके संबंधों में खटास का मुख्य कारण रही हैं। ट्रूडो सरकार पर आरोप था कि वह खालिस्तान समर्थकों के प्रति नरमी बरत रही थी। अब देखना होगा कि मार्क कार्नी इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं और क्या भारत-कनाडा संबंधों में सुधार ला सकते हैं।
भारत-कनाडा संबंधों पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कार्नी सरकार खालिस्तान समर्थक संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती है, तो इससे भारत-कनाडा संबंधों में सुधार संभव है। भारत पहले ही कई बार कनाडा से इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने की मांग कर चुका है।
अर्थव्यवस्था और विदेश नीति भी होंगी अहम
कार्नी के सामने केवल खालिस्तान मुद्दा ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति को भी सुधारने की चुनौती होगी। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कनाडा की छवि को मजबूत करना भी उनके एजेंडे में शामिल होगा।
मार्क कार्नी के नेतृत्व में कनाडा किस दिशा में आगे बढ़ता है और क्या वह भारत के साथ संबंधों को सुधार पाएंगे, यह
देखने वाली बात होगी।
