Source The Economics Time
नई दिल्ली: शुक्रवार, 13 जून, 2025 का दिन भारतीय शेयर बाजार और कमोडिटी मार्केट के लिए ‘काला शुक्रवार’ साबित हुआ। इजरायल द्वारा ईरान पर किए गए अप्रत्याशित सैन्य हमले ने वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव को चरम पर पहुंचा दिया, जिसका सीधा असर भारतीय बाजारों पर देखने को मिला। सेंसेक्स में 1,300 अंकों से अधिक की भारी गिरावट दर्ज की गई, जबकि सोने की कीमतें 1 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं और कच्चे तेल की कीमतें $78 प्रति बैरल के करीब पहुंच गईं।
बाजारों में हाहाकार:
सुबह बाजार खुलते ही निवेशकों में अफरा-तफरी मच गई। इजरायल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हमला करने की पुष्टि की, जिससे मध्य पूर्व में एक बड़े संघर्ष की आशंका बढ़ गई। इस खबर ने वैश्विक बाजारों को हिला दिया और भारतीय बाजार भी इससे अछूते नहीं रहे।
* सेंसेक्स धड़ाम: बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 1,300 से अधिक अंक गिरकर 80,429.54 पर बंद हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी 50 भी 24,500 के स्तर से नीचे आ गया। सभी सेक्टोरल इंडेक्स लाल निशान में बंद हुए, जिसमें बैंकिंग, तेल और गैस शेयरों में सबसे बड़ी गिरावट देखी गई।
* सोना बना ‘सुरक्षित निवेश’: अनिश्चितता के माहौल में निवेशकों ने सुरक्षित निवेश के तौर पर सोने का रुख किया, जिससे इसकी कीमतों में भारी उछाल आया। घरेलू वायदा बाजार में सोना 1 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम के ऐतिहासिक स्तर को छू गया।
* कच्चा तेल आग बबूला: मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव ने कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित होने की आशंकाओं को जन्म दिया। ब्रेंट क्रूड वायदा $78 प्रति बैरल के करीब पहुंच गया, जो भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए चिंता का विषय है। कच्चे तेल की ऊंची कीमतें महंगाई बढ़ा सकती हैं और देश की राजकोषीय स्थिति पर भी दबाव डाल सकती हैं।
तनाव का मूल कारण:
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पुष्टि की है कि यह ऑपरेशन ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम को लक्षित कर रहा था, जिसमें नतान्ज़ परमाणु सुविधा प्रमुख लक्ष्य थी। इस हमले से ईरान के साथ पहले से ही तनावपूर्ण संबंध और बिगड़ गए हैं, जिससे क्षेत्र में एक पूर्ण युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका ने इस हमले को इजरायल की एकतरफा सैन्य कार्रवाई बताया है और ईरान को अमेरिकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई न करने की चेतावनी दी है।
आगे क्या?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह संघर्ष लंबा खिंचता है, तो इसके वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। तेल की कीमतों में और वृद्धि, वैश्विक व्यापार में व्यवधान और निवेशक भावना में गिरावट आने वाले दिनों में बाजार की अस्थिरता को बढ़ा सकती है। निवेशक अब इजरायल और ईरान के बीच अगले कदमों पर करीब से नजर रख रहे हैं, साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया पर भी निगाहें हैं। ‘फ्राइडे द 13वीं’ का यह दिन निश्चित रूप से भारतीय और वैश्विक बाजारों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में दर्ज होगा।
