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तेल की कीमतें बढ़ीं, इजरायल-ईरान संकट से अमेरिकी शेयर बाजार लुढ़का

SOURCE Al Jazeera

न्यू यॉर्क/नई दिल्ली: मध्य पूर्व में गहराते इजरायल-ईरान संकट ने वैश्विक बाजारों में भारी उथल-पुथल मचा दी है। मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखा गया, जबकि अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट दर्ज की गई। निवेशकों में अनिश्चितता का माहौल है, क्योंकि भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभावों को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।

खबरों के अनुसार, इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने कच्चे तेल की आपूर्ति को बाधित करने की आशंकाओं को जन्म दिया है। भूमध्य सागर और फारस की खाड़ी दुनिया के प्रमुख तेल शिपिंग मार्गों में से हैं, और किसी भी तरह की सैन्य कार्रवाई इन महत्वपूर्ण मार्गों से होने वाली आपूर्ति को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। इसी आशंका के चलते ब्रेंट क्रूड वायदा 4% से अधिक बढ़कर $90 प्रति बैरल के करीब पहुंच गया, जबकि अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड भी इसी तरह के रुझान के साथ $85 प्रति बैरल के ऊपर कारोबार कर रहा था। ऊर्जा बाजारों के विश्लेषकों का मानना है कि यदि स्थिति और बिगड़ती है, तो तेल की कीमतें और भी ऊपर जा सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं और व्यवसायों दोनों पर दबाव बढ़ेगा।

न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में, तीनों प्रमुख सूचकांकों – डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज, एस एंड पी 500 और नैस्डैक कंपोजिट – में गिरावट दर्ज की गई। निवेशक जोखिम भरे परिसंपत्तियों से दूर होकर सुरक्षित ठिकाने की तलाश में थे, जिससे सोने और अमेरिकी ट्रेजरी जैसे पारंपरिक सुरक्षित निवेशों की मांग बढ़ी। प्रौद्योगिकी और वित्तीय शेयरों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, क्योंकि बाजार को आशंका है कि ऊर्जा की बढ़ती कीमतें उपभोक्ता खर्च को कम कर देंगी और कंपनियों के मुनाफे पर असर डालेंगी।

इस बीच, कई देशों ने अपने नागरिकों को मध्य पूर्व की यात्रा न करने की सलाह जारी की है और क्षेत्र में तैनात अपने राजनयिकों और कर्मियों की सुरक्षा बढ़ा दी है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन तत्काल शांति बहाली के प्रयासों में जुटे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस संकट का असर केवल ऊर्जा और शेयर बाजारों तक ही सीमित नहीं रहेगा। यह वैश्विक व्यापार, मुद्रास्फीति और यहां तक कि खाद्य सुरक्षा पर भी दूरगामी परिणाम डाल सकता है। भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए यह स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है, क्योंकि रुपये पर दबाव बढ़ने और आयात बिल बढ़ने से घरेलू अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

फिलहाल, सभी की निगाहें राजनयिक प्रयासों पर टिकी हैं। वैश्विक समुदाय को उम्मीद है कि तनाव को कम करने और एक पूर्ण पैमाने पर संघर्ष को रोकने के लिए एक रास्ता निकाला जाएगा, जिसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। जब तक अनिश्चितता बनी रहती है, तब तक वैश्विक बाजारों में अस्थिरता का माहौल बने रहने की संभावना है।

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