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बिहार: मतदाता सूची पुनरीक्षण पर बवाल, विपक्ष क्यों है सहमा?

SOURCE The Indian Express

पटना, [14 july]: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। जहां एक ओर भारत निर्वाचन आयोग (ECI) इसे निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया बता रहा है, वहीं विपक्षी दल इसे मतदाताओं को सूची से हटाने की साजिश करार दे रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर निर्वाचन आयोग अपना काम कर रहा है तो विपक्ष मतदाता सूची के पुनरीक्षण से इतना डरा हुआ क्यों है?

निर्वाचन आयोग का कहना है कि उसका संवैधानिक कर्तव्य है कि वह एक शुद्ध, स्वस्थ और पारदर्शी मतदाता सूची तैयार करे ताकि कोई भी योग्य मतदाता छूटने न पाए और कोई भी अयोग्य व्यक्ति सूची में शामिल न हो सके। 2003 के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर हो रहे इस घर-घर सत्यापन अभियान का उद्देश्य मृत, स्थानांतरित या डुप्लीकेट मतदाताओं के नाम हटाना और नए या छूटे हुए नामों को सत्यापित करना है। आयोग ने स्पष्ट किया है कि केवल उन्हीं लोगों को मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा जो भारतीय नागरिक हैं।

हालांकि, विपक्षी दलों, विशेषकर राजद और कांग्रेस ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि यह पुनरीक्षण एनडीए को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है और इसका लक्ष्य दलितों, पिछड़ों और अतिपिछड़ों जैसे गरीब तबके के करोड़ों मतदाताओं के नाम सूची से हटाना है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि सत्यापन के लिए मांगे जा रहे दस्तावेज कई ग्रामीण मतदाताओं के पास उपलब्ध नहीं हैं, जिससे वे मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। कुछ विपक्षी नेताओं ने तो यहां तक आरोप लगाया है कि यह “मोदी जी, अमित शाह और नीतीश कुमार जी के निर्देश पर” गरीबों के नाम हटाने की साजिश है।

इस मामले ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है, जहां कई याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह प्रक्रिया मतदाताओं पर पात्रता का प्रमाण देने का बोझ डालती है और लाखों लोगों के मताधिकार से वंचित होने का खतरा है। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन उसने समय-सीमा की कमी और दस्तावेज आवश्यकताओं में अस्पष्टता पर चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों के रूप में स्वीकार करने पर विचार करने का भी निर्देश दिया है, जिससे कई मतदाताओं को राहत मिलने की उम्मीद है।

निर्वाचन आयोग के सूत्रों के अनुसार, इस घर-घर सत्यापन अभियान में बिहार में रह रहे नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के कई अवैध प्रवासियों की पहचान की गई है, जिन्होंने धोखाधड़ी से आधार, राशन कार्ड और अधिवास प्रमाण पत्र हासिल कर लिए थे। आयोग ने स्पष्ट किया है कि इन अवैध प्रवासियों के नाम अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किए जाएंगे।

निर्वाचन आयोग की यह कवायद मतदाता सूची की सत्यनिष्ठा बनाए रखने और निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। एक त्रुटिहीन और अद्यतन मतदाता सूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव होती है। हालांकि, इस प्रक्रिया को समावेशिता और सटीकता के बीच संतुलन बनाना भी आवश्यक है ताकि कोई भी वास्तविक नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न हो। विपक्ष के डर को दूर करने के लिए निर्वाचन आयोग को पूरी प्रक्रिया में अधिकतम पारदर्शिता और जनभागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।

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