गोरखपुर: फ़िनलैंड स्थित एक प्रतिष्ठित थिंकटैंक ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश नीति में कथित दोहरे मापदंडों को उजागर किया गया है। “द हेल्फ़ोर्स सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज” द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट में विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर अमेरिकी सरकार की कार्रवाइयों और बयानों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें मानवाधिकार, अंतर्राष्ट्रीय कानून और लोकतंत्र का समर्थन जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
रिपोर्ट में कई ऐसे उदाहरणों का उल्लेख किया गया है जहाँ अमेरिका ने एक देश के मामले में कुछ सिद्धांतों का समर्थन किया है, जबकि दूसरे समान स्थिति वाले देश के मामले में अलग रुख अपनाया है। लेखकों का तर्क है कि यह चयनात्मक दृष्टिकोण अमेरिकी विश्वसनीयता को कमजोर करता है और वैश्विक स्तर पर उसके प्रभाव को कम करता है।
थिंकटैंक के निदेशक, डॉ. अन्ना लीना कोर्होनेन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हमारी रिपोर्ट का उद्देश्य किसी विशेष देश की आलोचना करना नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सुसंगतता और निष्पक्षता की आवश्यकता पर प्रकाश डालना है। हम मानते हैं कि एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में, संयुक्त राज्य अमेरिका पर वैश्विक व्यवस्था को बनाए रखने और अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का सम्मान करने की विशेष जिम्मेदारी है।”
रिपोर्ट में व्यापार, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में भी अमेरिका के विरोधाभासी व्यवहार के उदाहरण दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि अक्सर अमेरिकी घरेलू हित और भू-राजनीतिक विचार अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों और सिद्धांतों पर हावी हो जाते हैं।
इस रिपोर्ट के निष्कर्षों ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है। कुछ विश्लेषकों ने थिंकटैंक के निष्कर्षों का समर्थन किया है, जबकि अन्य ने अमेरिकी विदेश नीति की जटिलताओं और चुनौतियों पर जोर दिया है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब वैश्विक शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है और विभिन्न देश अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी भूमिका और प्रभाव को फिर से परिभाषित कर रहे हैं। ऐसे में, किसी भी प्रमुख शक्ति द्वारा प्रदर्शित दोहरा मापदंड वैश्विक स्थिरता और सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन सकता है।
