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नई दिल्ली: अमेरिका द्वारा हाल ही में लगाए गए टैरिफ (आयात शुल्क) का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इस पर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन ने अपना दृष्टिकोण साझा किया है। उन्होंने कहा है कि इन टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव अभी पूरी तरह से आंकना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह निश्चित है कि इन नीतियों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में मंदी की कोई आशंका नहीं है।
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अमेरिका ने हाल ही में रूस से तेल खरीदने को लेकर भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया था, जिसे बाद में 50% तक बढ़ा दिया गया। इस कदम को लेकर भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिला था और कई विशेषज्ञों ने भारतीय जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) पर इसके संभावित नकारात्मक प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की थी। कुछ रेटिंग एजेंसियों और विशेषज्ञों का अनुमान था कि इन टैरिफ के कारण भारत की जीडीपी वृद्धि दर में 0.3 से 0.6% तक की कमी आ सकती है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार का बयान
नागेश्वरन ने इन चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत है और इन टैरिफ का सामना करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्था को काफी मजबूत किया है, और यह घरेलू मांग और निवेश पर निर्भर करती है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत नए बाजारों की तलाश कर रहा है और “मेक इन इंडिया” पहल के माध्यम से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है, जो इन चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगा।
नागेश्वरन ने कहा कि अमेरिका के साथ भारत का व्यापार घाटा हमेशा से एक मुद्दा रहा है, लेकिन टैरिफ का यह कदम भारत के लिए एक अवसर भी साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि इससे भारतीय कंपनियों को “मेक इन अमेरिका” मिशन में शामिल होने और अमेरिका में निवेश करने के अवसर मिल सकते हैं। इसके अलावा, भारत अपनी व्यापार नीतियों में सुधार कर एक अधिक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
विशेषज्ञों की राय
जबकि मुख्य आर्थिक सलाहकार ने भारत की आर्थिक मजबूती पर जोर दिया है, कई अन्य विशेषज्ञ इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि इन टैरिफ का असर विशेष रूप से रत्न और आभूषण, परिधान और निर्मित वस्त्र जैसे क्षेत्रों पर पड़ेगा, जो अमेरिका को बड़े पैमाने पर निर्यात करते हैं। इससे इन उद्योगों में रोजगार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, अधिकांश विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि भारत के लिए यह एक चुनौती के साथ-साथ एक अवसर भी है, जिसे वह अपनी नीतियों और रणनीतियों के माध्यम से सफलतापूर्वक पार कर सकता है।
