Source The New Indian express
चेन्नई: ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन के स्वच्छता कर्मचारियों और पुलिस के बीच बुधवार रात एक बड़ा टकराव देखने को मिला, जब पुलिस ने रिपन बिल्डिंग के बाहर प्रदर्शन कर रहे सैकड़ों कर्मचारियों को बलपूर्वक हटा दिया। कर्मचारी, जो पिछले 12 दिनों से निगम द्वारा कचरा प्रबंधन का काम निजी कंपनियों को सौंपने के फैसले का विरोध कर रहे थे, मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के बाद हटाए गए।
यह टकराव तब हुआ जब मद्रास उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को प्रदर्शनकारियों को हटाने का आदेश दिया, जो फुटपाथ और सड़कों पर कब्जा कर रहे थे। इस आदेश के तुरंत बाद, गुरुवार तड़के पुलिस ने कार्रवाई शुरू की। रिपोर्टों के अनुसार, लगभग 40 बसों में प्रदर्शनकारियों को शहर के विभिन्न सामुदायिक केंद्रों में ले जाया गया। इस दौरान कुछ महिला कर्मचारी बेहोश हो गईं और कुछ घायल भी हुईं।
कर्मचारी रॉयपुरम (जोन 5) और तिरुविका नगर (जोन 6) में कचरा प्रबंधन के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि इस फैसले से 15 साल से काम कर रहे करीब 2,000 NULM (राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन) अनुबंध कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे। उनकी मुख्य मांगों में निजीकरण को रद्द करना और स्थायी रोजगार देना शामिल है।
पुलिस की इस कार्रवाई पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पीएमके अध्यक्ष डॉ. अन्बुमणि रामदॉस और टीवीके नेता विजय ने इस कार्रवाई की निंदा करते हुए इसे “फासीवादी” और “कायरतापूर्ण” करार दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार को बातचीत के जरिए इस मुद्दे को सुलझाना चाहिए था।
यह घटना शहर की स्वच्छता व्यवस्था को प्रभावित कर सकती है, जबकि कर्मचारियों और सरकार के बीच तनाव गहराता जा रहा है। मामले को मद्रास उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी गई है, जहां वर्कर्स राइट्स मूवमेंट के एक नेता ने निजीकरण पर रोक लगाने की मांग की है।
