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बेंगलुरु। केंद्र सरकार ने कर्नाटक उच्च न्यायालय को बताया है कि नया ऑनलाइन गेमिंग (संवर्धन और विनियमन) अधिनियम, 2025, जिसे हाल ही में संसद द्वारा पारित किया गया है, को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। केंद्र ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद किसी कानून को अधिसूचित करना एक संवैधानिक प्रक्रिया है और अदालतें इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। यह टिप्पणी दिल्ली स्थित एक गेमिंग कंपनी हेड डिजिटल वर्क्स द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें नए कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता कंपनी ने तर्क दिया है कि यह कानून लाखों लोगों की आजीविका को खतरे में डालेगा और रातोंरात पूरे उद्योग को बंद कर देगा। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह कानून कौशल-आधारित खेलों और संयोग-आधारित खेलों के बीच के अंतर को धुंधला कर देता है, जो पहले से स्थापित कानूनी सिद्धांतों के खिलाफ है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से यह भी अनुरोध किया कि जब तक मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती, तब तक कानून के कार्यान्वयन पर अंतरिम रोक लगाई जाए।
सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में स्पष्ट किया कि यह कानून ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते नशे, वित्तीय नुकसान और सामाजिक अशांति को रोकने के लिए लाया गया है। सरकार ने यह भी कहा कि इस कानून का उद्देश्य ई-स्पोर्ट्स और ऑनलाइन सोशल गेम्स को बढ़ावा देना है, जबकि ऑनलाइन मनी गेम्स पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना है, जिनमें वित्तीय जोखिम शामिल हैं।
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया है और अगली सुनवाई 8 सितंबर के लिए तय की ह।
