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नई दिल्ली: अमेरिकी टैरिफ और व्यापार में अनिश्चितता के कारण भारतीय रुपये में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है। रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 88.4425 के नए रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका द्वारा हाल ही में भारतीय सामानों पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ के कारण रुपये पर भारी दबाव पड़ा है। यह टैरिफ अब कुल 50% हो गया है।
क्या हैं गिरावट के कारण?
भारतीय रुपये में यह गिरावट कई कारकों के कारण हुई है। सबसे बड़ा कारण अमेरिका द्वारा लगाए गए दंडात्मक टैरिफ हैं, जिससे भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। इसके अलावा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) की लगातार बिकवाली भी रुपये की कमजोरी का एक प्रमुख कारण है। विदेशी निवेशकों ने इस साल अब तक भारतीय ऋण और इक्विटी बाजारों से 9.7 अरब डॉलर की निकासी की है। व्यापार में अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव ने भी निवेशकों के विश्वास को कमजोर किया है।
RBI की भूमिका और आगे की राह
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये की तेज गिरावट को रोकने के लिए कई बार हस्तक्षेप किया है। आरबीआई ने डॉलर की बिक्री कर रुपये को सहारा देने की कोशिश की है। हालांकि, बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक अमेरिका के साथ व्यापार संबंध बेहतर नहीं होते, तब तक रुपये पर दबाव बना रहेगा। कुछ विश्लेषकों का अनुमान है कि रुपया 89 के स्तर को भी छू सकता है। सरकार और आरबीआई के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे किस तरह से इस गिरावट को रोकते हैं और व्यापार घाटे को बढ़ने से रोकते हैं।
