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नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को उस एक्स-पार्टी (एकतरफा) गैग ऑर्डर को रद्द कर दिया है, जिसके तहत चार पत्रकारों को अडानी समूह से जुड़ी खबरें प्रकाशित करने और रिपोर्टिंग करने से रोक दिया गया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रेस की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक व्यवस्था की बुनियाद है और बिना सभी पक्षों को सुने इस तरह का आदेश लागू करना न्यायसंगत नहीं है।
यह मामला तब सामने आया जब अडानी समूह ने अदालत का दरवाजा खटखटाकर चार पत्रकारों पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की थी। समूह का कहना था कि पत्रकारों की कुछ रिपोर्टें कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं। अदालत ने पहले चरण में कंपनी की अर्जी स्वीकार कर पत्रकारों पर अस्थायी रोक लगा दी थी। हालांकि, बाद में सुनवाई के दौरान अदालत ने माना कि एक्स-पार्टी आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि प्रेस की आज़ादी और स्वतंत्र पत्रकारिता पर अंकुश लगाना संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायाधीश ने अपने फैसले में टिप्पणी की कि अगर किसी रिपोर्ट में तथ्यों की सत्यता पर सवाल है तो उसका समाधान कानूनी प्रक्रिया और जवाबी कार्रवाई के जरिए होना चाहिए, न कि पत्रकारों की आवाज़ दबाकर।
पत्रकारों और मीडिया संगठनों ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि यह निर्णय प्रेस की स्वतंत्रता और पारदर्शिता को मजबूत करने वाला है। वहीं, अडानी समूह ने कहा कि वह अदालत के आदेश की समीक्षा करेगा और आगे की कानूनी रणनीति पर विचार करेगा।
यह मामला एक बार फिर इस बहस को हवा देता है कि कॉर्पोरेट जगत और मीडिया की स्वतंत्रता के बीच संतुलन कैसे कायम रखा जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायपालिका ने इस फैसले के जरिए प्रेस की स्वतंत्रता की अहमियत को रेखांकित किया है।
