Source The Indian Express
नई दिल्ली: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक नए आदेश ने एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम में एक बड़ा बदलाव ला दिया है। अब विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में लाने के लिए कंपनियों को प्रति आवेदन $100,000 (लगभग ₹83 लाख) का भारी-भरकम शुल्क चुकाना होगा। इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा करना और एच-1बी कार्यक्रम के कथित दुरुपयोग को रोकना है। हालांकि, इस फैसले से उन कंपनियों और कर्मचारियों में खलबली मच गई है जो इस वीज़ा पर निर्भर हैं, खासकर भारत के आईटी पेशेवरों के बीच।
क्या है नया नियम?
ट्रंप प्रशासन द्वारा जारी उद्घोषणा के अनुसार, यह नया शुल्क उन नए एच-1बी आवेदनों पर लागू होगा जो 21 सितंबर, 2025 के बाद फाइल किए गए हैं। इसका मतलब है कि जिन कर्मचारियों के पास पहले से ही वैध एच-1बी वीज़ा है, उन्हें इस शुल्क का भुगतान नहीं करना होगा, भले ही वे देश से बाहर हों। व्हाइट हाउस के अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि यह एक एकमुश्त शुल्क है, न कि वार्षिक भुगतान।
भुगतान कौन करेगा?
अमेरिकी कानून के तहत, एच-1बी वीज़ा से संबंधित सभी शुल्क का भुगतान नियोक्ता (employer) द्वारा किया जाता है। इसका उद्देश्य विदेशी कर्मचारियों को आर्थिक रूप से शोषित होने से बचाना है। यह नया $100,000 का शुल्क भी इसी नियम के तहत कंपनियों को ही चुकाना होगा। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि क्या कुछ मामलों में कर्मचारियों को भी इसका बोझ उठाना पड़ेगा, जिससे अनिश्चितता बनी हुई है।
किसे मिलेगी छूट?
नए नियम में कुछ छूट (exemptions) भी दी गई हैं। यह शुल्क उन लोगों पर लागू नहीं होगा जो पहले से ही अमेरिका में एच-1बी वीज़ा पर हैं या जिन्हें हाल ही में लॉटरी में चुना गया है। इसके अलावा, डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) के पास यह अधिकार है कि वह उन मामलों में शुल्क माफ कर सकती है, जहां किसी विदेशी कर्मचारी को काम पर रखना राष्ट्रीय हित में हो और इससे अमेरिकी सुरक्षा या कल्याण को कोई खतरा न हो। इसका मतलब है कि स्वास्थ्य सेवा या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काम करने वाले पेशेवरों को छूट मिल सकती है।
अनिश्चितता और भविष्य की राह
इस घोषणा के बाद से भारतीय आईटी पेशेवरों और कंपनियों में चिंता बढ़ गई है, क्योंकि भारत एच-1बी वीज़ा का सबसे बड़ा लाभार्थी है। आलोचकों का मानना है कि यह कदम अमेरिका में नवाचार को बाधित कर सकता है और कंपनियों को विदेशों में, खासकर भारत में, अपने परिचालन को स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय लंबी अवधि में अमेरिकी कार्यबल को मजबूत करेगा। यह देखना बाकी है कि इस नए नियम का वास्तविक प्रभाव क्या होगा और क्या इसे कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
