Infosys के सह-संस्थापक और अध्यक्ष, नंदन नीलेकणि, ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मानव कौशल की जगह नहीं ले सकती उन्होंने जोर देकर कहा कि AI, चाहे जितना भी उन्नत हो जाए, सहानुभूति, नेतृत्व, सहयोग और रचनात्मकता जैसे मानव कौशलों का प्रतिस्थापन नहीं कर सकता।
नीलेकणि ने कहा, “आपके पास दुनिया की सारी AI हो सकती है, लेकिन यदि आप पांच लोगों को एक साथ काम करने और सहयोग करने के लिए नहीं ला सकते, तो आप कहीं नहीं पहुंच सकते।” उन्होंने यह भी बताया कि AI का उपयोग मानव क्षमताओं को बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए, न कि उन्हें प्रतिस्थापित करने के लिए।
AI के रोजगार पर प्रभाव के बारे में बात करते हुए, नीलेकणि ने कहा कि नई तकनीकों के आगमन से कुछ नौकरियां समाप्त हो सकती हैं, लेकिन साथ ही नई नौकरियां भी उत्पन्न होंगी। उन्होंने कहा, “जब भी कोई नई तकनीक आती है, कुछ नौकरियां जाएंगी, लेकिन नई नौकरियां भी आएंगी।” उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि एक अवधि हो सकती है जब नौकरी की हानि नौकरी की वृद्धि से अधिक हो, लेकिन अंततः संतुलन स्थापित होगा।
नीलेकणि ने यह भी स्पष्ट किया कि IT उद्योग में हालिया कर्मचारियों की संख्या में कमी AI के कारण नहीं है, बल्कि ग्राहक कंपनियों द्वारा विवेकाधीन खर्च में कमी के कारण है। उन्होंने कहा, “यह AI के कारण नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में, ग्राहक कंपनियों के विवेकाधीन खर्च में कमी आई है, और इसका AI से कोई लेना-देना नहीं है।” उन्होंने इसे एक चक्रीय घटना बताया, न कि AI के कारण होने वाली स्थायी गिरावट।
AI के संभावित लाभों पर चर्चा करते हुए, नीलेकणि ने कहा कि यदि AI का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कृषि जैसे क्षेत्रों में किया जाए, तो यह लोगों के जीवन में सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने कहा, “यदि हम AI का उपयोग लोगों को बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, और बेहतर कृषि ज्ञान देने के लिए कर सकते हैं, तो इसका बहुत सकारात्मक प्रभाव होगा।”
नीलेकणि ने यह भी बताया कि AI का उपयोग भारत में सार्वजनिक डिजिटल अवसंरचना (DPI) को अगले स्तर पर ले जाने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “हम इसे DPI की शक्ति AI कहते हैं।” उन्होंने समझाया कि AI के साथ DPI का संयोजन करके, भारत शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सुधार कर सकता है।
AI के विकास में डेटा गोपनीयता के महत्व पर जोर देते हुए, नीलेकणि ने कहा कि डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (DPDP) अधिनियम एक मजबूत ढांचा प्रदान करता है जो AI मॉडल के उपयोग को नियंत्रित करता है। उन्होंने कहा, “गोपनीयता व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी के बारे में है। जब तक डेटा को इस तरह से गुमनाम किया जाता है कि उसे किसी व्यक्ति से जोड़ा नहीं जा सकता, तब तक बड़ी मात्रा में डेटा को संसाधित किया जा सकता है बिना किसी व्यक्ति को प्रभावित किए।”
नीलेकणि ने यह भी बताया कि AI के क्षेत्र में भारत में महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है। उन्होंने विशेष रूप से IIT-मद्रास के प्रोफेसर मितेश खापरा और उनके AI4भारत परियोजना की प्रशंसा की, जो भारतीय भाषाओं के लिए ओपन-सोर्स टूल और मॉडल विकसित कर रही है। उन्होंने कहा, “मितेश खापरा IIT-मद्रास में AI4भारत का निर्माण कर रहे हैं, जो भाषिणी कार्यक्रम का हिस्सा है। यह अद्भुत है जो उन्होंने किया है।”
नंदन नीलेकणि का दृष्टिकोण स्पष्ट है: AI मानव कौशल का प्रतिस्थापन नहीं है, बल्कि उन्हें बढ़ाने का एक साधन है। सही ढंग से उपयोग किए जाने पर, AI समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है, लेकिन यह मानव तत्व का स्था
न नहीं ले सकता।
