Source Mint
नई दिल्ली — अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा H-1B वीजा शुल्क को 100,000 डॉलर तक बढ़ाने के फैसले ने भारत की IT कंपनियों को नई चुनौतियों के बीच डाल दिया है। लेकिन देश की प्रमुख रेटिङ एजेंसी Crisil Intelligence की रिपोर्ट की मानें तो इस वृद्धि का सीधा असर कंपनियों की लाभप्रदता पर बहुत अधिक नहीं होगा, क्योंकि कंपनियाँ अपनी बढ़ी हुई लागत का 30–70 प्रतिशत हिस्सा अपने ग्राहकों पर स्थानांतरित कर सकती हैं
लागत असर Crisil के अनुसार इस वीजा शुल्क वृद्धि से IT कंपनियों की ऑपरेटिंग मार्जिन में लगभग 10–20 बेसिस पॉइंट की कमी हो सकती है।
ग्राहक पर पास-थ्रू कंपनियाँ संभावित रूप से इस बढ़ी हुई लागत का 30–70 % अपने ग्राहकों को पास कर सकती हैं।
निर्भरता में कमी हालााँकि पहले अनेक भारतीय IT फर्मों ने H-1B वीजा पर काफी निर्भरता रखी थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस निर्भरता में कमी आई है।
वर्तमान वर्ष पर असर नहीं Crisil ने यह बात स्पष्ट की है कि इस वर्ष (2025-26) इस शुल्क वृद्धि का तत्काल असर नहीं होगा क्योंकि वीजा आवश्यकताएँ पहले ही पूरी की जा चुकी हैं।
वीजा खर्च का अनुपात कुल कर्मचारी खर्च में वीजा शुल्क का हिस्सा वर्तमान में नगण्य है (लगभग 0.02–0.05 % तक) — लेकिन नई दरें इस हिस्से को बढ़ा सकती हैं।
निहितार्थ एवं चुनौतियाँ
1. ग्राहक वार्ता में दबाव
कंपनियों को ग्राहकों के साथ लागत बढ़ोतरी की बाध्यता समझानी होगी। बड़े खाता ग्राहक संभवतः विरोध कर सकते हैं या पुनर्विचार की मांग कर सकते हैं।
2. ऑफशोर रणनीतियों की ओर झुकाव
बरीकी से देखें तो IT फर्में ऑफशोर डिलीवरी मॉडल (भारत या अन्य देशों पर आधारित संसाधन) को और बल दे सकती हैं, ताकि अमेरिका-स्थित स्टाफिंग पर निर्भरता कम हो।
3. स्थानीय भर्ती का प्रोत्साहन
अमेरिकी मार्केट में स्थानीय (onshore) भर्ती को बढ़ावा देना एक विकल्प होगा, ताकि H-1B वीजा पर निर्भरता कम हो सके।
4. मांग और प्रतिस्पर्धात्मक दबाव
यदि और कंपनियां शुल्क वृद्धि को ग्राहकों पर पास न करें या दबाव के कारण न कर पाएं, तो मार्जिन पर दबाव बढ़ सकता है।
5. नीति एवं कानूनी विवाद
इस तरह की तीव्र वीजा शुल्क वृद्धि पर कानूनी चुनौतियाँ भी संभव हैं, खासकर इमिग्रेशन और व्यापार कानूनों के संदर्भ में।
