Source HT
नई दिल्ली: दिवाली के बाद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर एक बार फिर ‘बेहद खराब’ श्रेणी में पहुँच गया है। पटाखों और हवा की धीमी गति के कारण जहरीली हुई हवा को साफ करने के लिए बहुप्रतीक्षित कृत्रिम वर्षा (आर्टिफिशियल रेन) योजना अभी भी ठंडे बस्ते में है। दिल्ली सरकार ने दिवाली के तुरंत बाद ट्रायल की उम्मीद जताई थी, लेकिन भारतीय मौसम विभाग (IMD) की हरी झंडी न मिलने के कारण इस योजना को बार-बार टालना पड़ा है।
अनुकूल बादलों की कमी मुख्य कारण
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने पुष्टि की है कि कृत्रिम वर्षा के लिए सभी आवश्यक तैयारियां—अनुमति से लेकर विमानों की व्यवस्था तक—पूरी हो चुकी हैं, लेकिन क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त बादलों की कमी के कारण यह ट्रायल आगे नहीं बढ़ पा रहा है।
क्लाउड सीडिंग तकनीक में बादलों में सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन का छिड़काव किया जाता है, जिससे बारिश को प्रेरित किया जा सके। इस प्रक्रिया के प्रभावी होने के लिए यह आवश्यक है कि आसमान में उपयुक्त नमी वाले बादल मौजूद हों। IMD के अनुसार, 25 अक्टूबर तक भी अनुकूल मौसम की स्थिति बनने की उम्मीद नहीं है। मंत्री सिरसा ने कहा, “जिस दिन हमें उपयुक्त बादल मिलेंगे, हम तुरंत ट्रायल करेंगे।”
योजना में बार-बार देरी
जुलाई: मॉनसून के कारण ट्रायल टला।
अगस्त-सितंबर: बदलते मौसम के पैटर्न और गड़बड़ी के कारण तारीख आगे बढ़ी।
अक्टूबर (दिवाली के बाद): उपयुक्त बादलों की कमी के कारण योजना रुकी हुई है।
यह प्रोजेक्ट, जिसमें IIT कानपुर भागीदार है, शुरू में प्रदूषण से निपटने के एक बड़े कदम के तौर पर देखा गया था। इसका लक्ष्य यह पता लगाना है कि क्या कृत्रिम वर्षा सर्दियों में प्रदूषण से राहत दिला सकती है। इस परियोजना को 23 विभागों से मंजूरी मिल चुकी है और क्लाउड-सीडिंग उपकरण वाला विमान भी मेरठ में तैनात है, लेकिन प्रकृति के सहयोग के बिना यह पहल अधूरी है।
