Source The Indian Express
मुंबई: रतन टाटा के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में गिने जाने वाले मेहली मिस्त्री को टाटा ट्रस्ट्स से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। ट्रस्टों के बोर्ड में उनकी पुनर्नियुक्ति के खिलाफ बहुमत से मतदान किया गया है, जिसके साथ ही भारत की सबसे प्रभावशाली परोपकारी संस्थाओं में उनके कार्यकाल का नाटकीय अंत हो गया है।
यह फैसला सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट, दोनों के लिए लिया गया है, जिनकी टाटा संस में कुल मिलाकर 51% की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है।
🤝 उदय: रतन टाटा के विश्वासपात्र
मेहली मिस्त्री ने हमेशा सोशल लाइमलाइट से दूरी बनाए रखी है, लेकिन कॉर्पोरेट जगत में उन्हें स्वर्गीय रतन टाटा के सबसे करीबी और वफादार लोगों में से एक माना जाता था।
2016 में जब उनके चचेरे भाई साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटाया गया था, तब मेहली ने परिवार के मतभेदों के बावजूद रतन टाटा का खुलकर समर्थन किया था, जिसने उनके रिश्ते की गहराई को साबित किया।
उन्हें 2022 में सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के बोर्ड में ट्रस्टी के रूप में शामिल किया गया था और वह रतन टाटा की वसीयत के एग्जीक्यूटर (लागू कराने वाले) भी हैं।
🗳️ अस्त: विरोध में पड़े वोट
मेहली मिस्त्री का तीन साल का कार्यकाल 28 अक्टूबर को समाप्त हो रहा था।
उनकी पुनर्नियुक्ति के लिए लाए गए सर्कुलर प्रस्ताव के खिलाफ तीन ट्रस्टियों ने मतदान किया। विरोध करने वाले ट्रस्टियों में टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और ट्रस्टी विजय सिंह शामिल थे।
छह ट्रस्टियों में से तीन के विरोध के कारण, मिस्त्री का कार्यकाल समाप्त करने का निर्णय दोनों प्रमुख ट्रस्टों में बहुमत से पारित हो गया।
इससे पहले मिस्त्री के नेतृत्व वाले एक गुट ने विजय सिंह को टाटा संस के नामित निदेशक के रूप में फिर से नियुक्त करने का विरोध किया था, जिसने ट्रस्टियों के बीच बढ़ते आंतरिक मतभेद को उजागर किया। रतन टाटा के समय में ट्रस्ट में फैसले आम तौर पर सर्वसम्मति से लिए जाते थे, जो अब टूटती दिख रही है।
ट्रस्ट के भीतर इस विभाजित वोट ने शीर्ष नेतृत्व में नियुक्तियों और शासन के मामलों पर बढ़ते तनाव को दर्शाया है, और यह रतन टाटा के बाद के युग में एक और महत्वपूर्ण मोड़ है।
