Source The Hindu
चेन्नई/पटना। चुनाव आयोग (Election Commission of India – EC) द्वारा बिहार में विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) के तहत ₹10,000 की नकद सहायता के वितरण पर चुप्पी साधने से एक बड़ा विरोधाभास पैदा हो गया है। चुनाव निकाय ने अतीत में, समान परिस्थितियों में, तमिलनाडु में दो प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं पर रोक लगा दी थी।
MMRY योजना 26 सितंबर को शुरू की गई थी, जिसके 10 दिन बाद 6 अक्टूबर को चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनावों के लिए मतदान की तारीखों की घोषणा की। इस योजना का लक्ष्य 75 लाख महिलाओं को कवर करना है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस के नेताओं ने इस योजना को आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) का उल्लंघन बताते हुए इसके कार्यान्वयन पर विरोध दर्ज कराया है।
तमिलनाडु में सख्त रुख
यह स्थिति तब और अधिक स्पष्ट हो जाती है जब हम तमिलनाडु में चुनाव आयोग के पूर्व के फैसलों को देखते हैं:
2004 में: चुनाव आयोग ने अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) सरकार द्वारा किसानों को मनी ऑर्डर के वितरण पर रोक लगा दी थी।
2006 में: आयोग ने द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सरकार की लोकप्रिय मुफ्त रंगीन टीवी योजना के वितरण को चुनाव समाप्त होने तक रोकने का निर्देश दिया था।
ये दोनों योजनाएँ चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से काफी पहले लागू थीं, फिर भी चुनाव निकाय ने इन्हें रोक दिया था।
विरोध के बावजूद चुप्पी
बिहार में MMRY के तहत ₹10,000 के भुगतान की योजना तब भी जारी है, जब यह एक राज्य-वित्त पोषित सहायता योजना है और आचार संहिता लागू है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बिहार में चुनाव से ठीक पहले एक बड़ी आबादी को नकद लाभ देने वाली योजना पर आयोग की ‘चुप्पी’ और तमिलनाडु में पहले लागू हो चुकी योजनाओं पर ‘रोक’ लगाना, चुनाव निकाय के रुख में एक बड़ा बदलाव या विरोधाभास दर्शाता है। इस विरोधाभास ने देश में चुनाव अखंडता (election integrity) और आयोग की निष्पक्षता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
