Source TOI
काबुल: अफगानिस्तान के पूर्वी हिस्से में आए भीषण भूकंप ने देश में भारी तबाही मचाई है। 6.0 तीव्रता के इस भूकंप से मरने वालों की संख्या 1,411 तक पहुंच गई है, जबकि 3,124 लोग घायल हुए हैं। यह भूकंप रविवार देर रात आया था, जिसने पहले से ही कई संकटों से जूझ रहे देश की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र कुनार प्रांत रहा है, जहां पांच हजार से अधिक घर पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके हैं।
पहाड़ी और दुर्गम इलाकों में बचाव और राहत कार्य में भारी बाधा आ रही है। सड़क मार्ग की कमी और मलबे के कारण राहतकर्मी प्रभावितों तक पहुंचने में संघर्ष कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के निवासी समन्वयक इंद्रिका रत्वत्ते ने स्थिति की गंभीरता को उजागर करते हुए कहा है कि यह ‘जीवन और मृत्यु’ का मामला है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान पहले से ही कई संकटों का सामना कर रहा है, और यह आपदा स्थिति को और भी खराब कर सकती है।
तालिबान सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय सहायता की अपील की है, लेकिन कई देशों ने सीधे तौर पर तालिबान को मदद देने से परहेज किया है। इसके बजाय, वे गैर-सरकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के माध्यम से सहायता प्रदान कर रहे हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से यह अफगानिस्तान में आया तीसरा बड़ा भूकंप है। देश पहले से ही आर्थिक कमजोरी, खाद्य संकट और पड़ोसी देशों से लोगों के वापस आने की समस्याओं से जूझ रहा है।
इस आपदा ने एक बार फिर अफगानिस्तान की नाजुक स्थिति को उजागर कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए यह एक चुनौती है कि वे कैसे एक मानवीय संकट का जवाब दें, जबकि देश की सरकार के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण हैं। भूकंप प्रभावितों को तत्काल चिकित्सा सहायता, भोजन, पानी और आश्रय की आवश्यकता है। आने वाले दिनों में और अधिक सहायता की आवश्यकता होगी, क्योंकि हजारों लोग बेघर हो चुके हैं और उनके पास कुछ भी नहीं बचा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अन्य सहायता एजेंसियों ने प्रभावित क्षेत्रों में टीमें भेजी हैं। ये टीमें घायलों का इलाज कर रही हैं और विस्थापित लोगों को प्राथमिक सहायता प्रदान कर रही हैं। यह महत्वपूर्ण है कि सहायता बिना किसी देरी के उन लोगों तक पहुंचे, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। इस आपदा के बाद, देश में पुनर्निर्माण और पुनर्वास का लंबा और कठिन दौर शुरू होगा, जिसके लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी।
