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नई दिल्ली, 2 नवंबर 2025:
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की तेज़ी से बढ़ती क्षमताएं अब साइबर अपराध के एक नए और डरावने रूप में सामने आ रही हैं। हाल ही में कई देशों में यह देखा गया है कि ऑनलाइन दी गई “मौत की धमकियां” केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहीं — बल्कि एआई की मदद से इन्हें हकीकत में बदलने की कोशिशें की जा रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति डिजिटल सुरक्षा और मानव जीवन दोनों के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है।
एआई टूल्स जैसे डीपफेक, जनरेटिव टेक्स्ट मॉडल और लोकेशन ट्रैकिंग एल्गोरिद्म का दुरुपयोग कर अपराधी अब किसी व्यक्ति की वास्तविक पहचान, चेहरा और दिनचर्या तक पहुंच पा रहे हैं। पहले जहां धमकियां केवल सोशल मीडिया संदेशों या ईमेल तक सीमित थीं, वहीं अब इन्हें वास्तविक वीडियो, आवाज़ और लोकेशन डेटा के साथ “विश्वसनीय” रूप दिया जा रहा है।
डीपफेक से बढ़ा डर
कई मामलों में अपराधियों ने एआई की मदद से पीड़ितों के नकली वीडियो बनाए और इन्हें ब्लैकमेल या मानसिक उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया। कुछ संगठनों ने चेतावनी दी है कि डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल राजनीतिक या व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए भी हो सकता है। साइबर सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, 2025 में अब तक डीपफेक से जुड़े 60% से अधिक मामलों में धमकियों और फर्जी खबरों का इस्तेमाल हुआ है।
कानून और सुरक्षा की चुनौती
सरकारें और सोशल मीडिया कंपनियां इस बढ़ते खतरे को लेकर सजग हैं, लेकिन एआई के तेज़ विकास के कारण नियमन करना मुश्किल साबित हो रहा है। भारत सहित कई देशों में अब “एआई सुरक्षा नीति” पर काम शुरू किया गया है, ताकि एआई-आधारित धमकियों और अपराधों से निपटने के लिए कानूनी ढांचा मजबूत किया जा सके।
विशेषज्ञों की चेतावनी
साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक एआई टूल्स को पारदर्शिता और नैतिक सीमाओं के साथ नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक ऑनलाइन धमकियों का यह नया रूप और भी खतरनाक हो सकता है। उनका कहना है कि आम लोगों को भी अपनी डिजिटल सुरक्षा को लेकर सतर्क रहना चाहिए — जैसे अज्ञात लिंक पर क्लिक न करना, टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन सक्रिय रखना और संदिग्ध संदेशों की रिपोर्ट करना।
एआई का यह “डार्क साइड” यह दिखाता है कि तकनीक जितनी शक्तिशाली होती जा रही है, उतनी ही सावधानी और जिम्मेदारी की भी मांग कर रही है।
