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नई दिल्ली: 25 वर्षों के अनुभव वाले एक प्रमुख न्यूरोसर्जन और नई दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) के प्रशिक्षित डॉ. अरुण एल नाइक ने हाल ही में व्हे प्रोटीन के सेवन और किडनी को होने वाले संभावित नुकसान से जुड़े एक बड़े मिथक का पर्दाफाश किया है। उनका यह खुलासा उन लाखों भारतीयों के लिए एक बड़ी राहत है जो अक्सर जिम सप्लीमेंट्स, खासकर प्रोटीन पाउडर के बारे में फैले डर के कारण जरूरी पोषण से कतराते हैं।
बेंगलुरु के सागर अस्पताल में मुख्य न्यूरोसर्जन के रूप में कार्यरत डॉ. नाइक ने जोर देकर कहा कि प्रोटीन पाउडर किडनी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, बशर्ते व्यक्ति को पहले से कोई गंभीर किडनी की बीमारी न हो। उन्होंने अपने सोशल मीडिया वीडियो में इस धारणा को ‘एक धोखा’ बताया जो कई भारतीयों को पोषण की कमी के कारण खतरे में डाल रहा है।
भारतीयों में प्रोटीन की कमी एक बड़ी चिंता:
डॉ. नाइक के अनुसार, सबसे बड़ी चिंता व्हे प्रोटीन नहीं है, बल्कि भारतीयों में प्रोटीन की पुरानी कमी (Chronic Protein Deficiency) है। उनका मानना है कि हमारा शरीर, विशेषकर हृदय, मस्तिष्क और मांसपेशियां, प्रोटीन पर निर्भर होते हैं। इसकी उपेक्षा करने की कीमत चुकानी पड़ सकती है।
किस पर करें दोष?
डॉ. नाइक ने स्पष्ट किया कि किडनी को दोषी ठहराने के बजाय, हमें चीनी (Sugar), रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट (Refined Carbs) और गतिहीन जीवन शैली (Sedentary Lifestyle) को दोष देना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि जिन देशों में प्रोटीन का सेवन सबसे अधिक है, वहां लाइफस्टाइल से जुड़ी हृदय रोगों की दर सबसे कम है।
उन्होंने चेतावनी दी, “प्रोटीन पर दोष लगाना बंद करें। दोष चीनी, रिफाइंड कार्ब्स और गतिहीन जीवन शैली पर लगाएं। आपका दिल, दिमाग और मांसपेशियां प्रोटीन पर बने हैं। इसकी उपेक्षा करने पर आपको कीमत चुकानी पड़ेगी।”
विशेषज्ञ की सलाह:
डॉ. नाइक का यह स्पष्टीकरण एक विशेषज्ञ की राय है जो भारतीयों को अनावश्यक डर को दूर कर सही पोषण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हालांकि, किसी भी सप्लीमेंट को अपने आहार में शामिल करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर या विशेषज्ञ से सलाह लेना महत्वपूर्ण है।
