SOURCE India Today
पटना, [जुलाई 17, 2025]: बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभियान को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सूत्रों के अनुसार, इस घर-घर सर्वेक्षण के दौरान राज्य की मतदाता सूची में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों के नाम पाए गए हैं, जिन्होंने कथित तौर पर फर्जी भारतीय दस्तावेज हासिल कर लिए हैं। इस खुलासे ने चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
चुनाव आयोग (ECI) ने इस बात की पुष्टि की है कि अभियान के दौरान कई ऐसे व्यक्तियों की पहचान की गई है जिनके पास आधार कार्ड, राशन कार्ड और निवास प्रमाण पत्र जैसे भारतीय दस्तावेज होने के बावजूद वे विदेशी नागरिक प्रतीत होते हैं। आयोग ने स्पष्ट किया है कि ऐसे सभी संदिग्ध नामों को अंतिम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा, जो 30 सितंबर को प्रकाशित होनी है। इन मामलों की विस्तृत जांच 1 अगस्त से 30 अगस्त के बीच की जाएगी।
हालांकि, विपक्षी दलों ने इस अभियान के समय और पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने इन दावों को “बकवास” करार दिया है और कहा है कि ये “सूत्रों” पर आधारित रिपोर्टें हैं, जिनकी विश्वसनीयता पर संदेह है। उन्होंने आरोप लगाया है कि यह अभियान जानबूझकर योग्य मतदाताओं को सूची से बाहर करने की एक साजिश हो सकती है। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि विदेशी नागरिकों का नाम सूची से हटाया जाना आवश्यक है।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया है, जहां बिहार के पुनरीक्षण अभियान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह सत्यापन के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को वैध प्रमाण के रूप में मानने पर विचार करे। अगली सुनवाई 28 जुलाई को होनी है, जो ड्राफ्ट मतदाता सूची के प्रकाशन से ठीक पहले है।
इस अभियान का उद्देश्य मतदाता सूची को त्रुटिहीन बनाना और यह सुनिश्चित करना है कि केवल भारतीय नागरिक ही मतदान के पात्र हों। हालांकि, इस प्रक्रिया से प्रवासी मजदूरों और समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के बड़े हिस्से में चिंता बढ़ गई है, जिन्हें नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा बिहार की राजनीति में और गरमा सकता है, खासकर राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए।
