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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से शी और पुतिन की अनुपस्थिति: क्या समूह के विस्तार से बढ़ रही है वैचारिक खाई?

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रियो डी जनेरियो, ब्राजील: ब्राजील के रियो डी जनेरियो में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की व्यक्तिगत अनुपस्थिति ने समूह के भविष्य और उसके विस्तार के संभावित प्रभावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां पुतिन अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) के गिरफ्तारी वारंट के कारण वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भाग ले रहे हैं, वहीं शी जिनपिंग की अनुपस्थिति ने अटकलों को जन्म दिया है कि क्या यह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव और समूह के भीतर बदलती गतिशीलता का परिणाम है।

यह पहली बार है जब शी जिनपिंग एक दशक से अधिक समय में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहे हैं। उनकी जगह चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग सम्मेलन में चीन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। क्रेमलिन के अनुसार, पुतिन भी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं होंगे क्योंकि ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका की तरह, रोम संविधि का हस्ताक्षरकर्ता है, जिसके तहत उन्हें गिरफ्तारी वारंट लागू करना होगा।

इन प्रमुख नेताओं की अनुपस्थिति ने ब्रिक्स की एकजुटता और वैश्विक प्रभाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह अनुपस्थिति समूह के भीतर एक वैचारिक विभाजन का संकेत हो सकती है, खासकर ब्रिक्स के हालिया विस्तार के बाद। 2024 से ब्रिक्स ने अपनी सदस्यता में मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल किया है, जो मूल सदस्यों – ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के अतिरिक्त हैं।

यह विस्तार, जिसने समूह के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हिस्सेदारी को बढ़ाया है और इसे दुनिया की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला बना दिया है, ने आंतरिक चुनौतियों को भी जन्म दिया है। नए सदस्यों के विविध आर्थिक हित और राजनीतिक प्रणालियाँ आम सहमति बनाने और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को और अधिक जटिल बना सकती हैं। सऊदी अरब और ईरान जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों का एक साथ शामिल होना भी समूह के भीतर संभावित संघर्षों को जन्म दे सकता है।

हालांकि, ब्रिक्स का विस्तार “ग्लोबल साउथ” की आवाज़ को मजबूत करने और एक अधिक संतुलित बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाने के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है, जो पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देता है। ब्राजील, जो इस वर्ष ब्रिक्स की अध्यक्षता कर रहा है, “समावेशी और सतत शासन के लिए ग्लोबल साउथ सहयोग को मजबूत करना” विषय पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सम्मेलन में उपस्थिति और ब्राजील के साथ उनकी द्विपक्षीय बैठकों को समूह के भीतर भारत की बढ़ती भूमिका के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि शी जिनपिंग की अनुपस्थिति से भारत और ब्राजील जैसे देशों को वैश्विक मंच पर अपनी कूटनीतिक छाप छोड़ने का एक बड़ा अवसर मिल सकता है।

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ब्रिक्स अपने विस्तार के बाद आंतरिक मतभेदों और विविध हितों को कैसे संभालता है। शी और पुतिन की अनुपस्थिति, चाहे उनके कारण कुछ भी रहे हों, निश्चित रूप से इस बात पर बहस छेड़ देगी कि क्या ब्रिक्स का विस्तार वास्तव में इसे मजबूत कर रहा है या इसके वैचारिक सामंजस्य को कमजोर कर रहा है।

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