नई दिल्ली: भारत में चीन के राजदूत जू फेहोंग ने दलाई लामा के उत्तराधिकार के मुद्दे पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि “पुनर्जन्म उनसे (दलाई लामा) शुरू नहीं हुआ था और न ही उनसे खत्म होगा। उन्हें यह तय करने का कोई अधिकार नहीं है कि यह प्रणाली जारी रहेगी या समाप्त होगी।” यह बयान ऐसे समय में आया है जब 14वें दलाई लामा 6 जुलाई को अपना 90वां जन्मदिन मना रहे हैं और उनके उत्तराधिकार का मुद्दा वैश्विक स्तर पर एक संवेदनशील भू-राजनीतिक और आध्यात्मिक विषय बन गया है।
चीनी राजदूत ने शनिवार को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म में “लिविंग बुद्धा” के पुनर्जन्म की प्रणाली 700 से अधिक वर्षों से मौजूद है। उन्होंने जोर देकर कहा कि 14वें दलाई लामा इस लंबी ऐतिहासिक परंपरा और धार्मिक उत्तराधिकार का एक हिस्सा हैं, और वह एकतरफा यह तय नहीं कर सकते कि यह संस्था जारी रहेगी या समाप्त होगी।
यह टिप्पणी दलाई लामा के हालिया बयानों के बाद आई है, जिसमें उन्होंने दोहराया था कि उनकी संस्था जारी रहेगी और केवल ‘गाडेन फोडरंग ट्रस्ट’ को ही उनके पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार होगा। उन्होंने यह भी संकेत दिया था कि उनके उत्तराधिकारी का चुनाव चीन के हस्तक्षेप के बिना होगा और वह ‘मुक्त’ देश में पैदा हो सकते हैं।
चीन लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि तिब्बती बौद्ध नेताओं के चयन की प्रक्रिया को चीनी राज्य द्वारा अनुमोदित प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने हाल ही में कहा था कि पुनर्जन्म को चीनी कानूनों और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करना चाहिए, जिसमें ‘गोल्डन अर्न’ से लॉट निकालना और केंद्र सरकार से अनुमोदन शामिल है। चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी मानता है और तिब्बत के धार्मिक मामलों पर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहता है।
दूसरी ओर, भारत ने इस मुद्दे पर तटस्थ रुख बनाए रखने की बात कही है, लेकिन केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू जैसे कुछ भारतीय नेताओं ने दलाई लामा के अधिकार का समर्थन किया है कि वह अपने उत्तराधिकार का फैसला खुद कर सकते हैं। यह विवाद चीन और भारत के बीच पहले से ही जटिल संबंधों में एक नया तनाव बिंदु जोड़ सकता है।
