Source The Hindu
नई दिल्ली: कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के नियमों में हालिया बदलावों को लेकर विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला है। विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार की ‘अर्थव्यवस्था को ठीक से न संभाल पाने’ की सज़ा अब वेतनभोगियों को दी जा रही है। विपक्षी नेताओं ने श्रम व रोजगार मंत्री मनसुख मंडाविया से इन नए और ‘कठोर’ प्रावधानों को तुरंत वापस लेने की मांग की है।
विपक्ष ने मुख्य रूप से ईपीएफ के समयपूर्व अंतिम निपटान की अवधि को मौजूदा 2 महीने से बढ़ाकर 12 महीने करने और अंतिम पेंशन निकासी की अवधि को 2 महीने से बढ़ाकर 36 महीने (3 साल) करने के फैसले पर निशाना साधा है। इसके अलावा, खाते में योगदान के 25 प्रतिशत को न्यूनतम शेष राशि के रूप में अनिवार्य रूप से रखने के प्रावधान की भी कड़ी आलोचना की गई है।
तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद साकेत गोखले ने इन नियमों को ‘स्तब्ध करने वाला और हास्यास्पद’ बताते हुए आरोप लगाया कि यह ‘वेतनभोगी लोगों के अपने पैसे की खुली चोरी’ है। उन्होंने कहा कि इन नए नियमों के तहत, नौकरी छूटने पर पीएफ निकालने के लिए अब दो महीने की बजाय पूरे एक साल तक बेरोज़गार रहना होगा। सबसे बुरी बात यह है कि ईपीएफ बैलेंस का 25 प्रतिशत हिस्सा हमेशा के लिए लॉक हो जाएगा। गोखले ने आरोप लगाया, “ये नए नियम एक घबराई हुई सरकार के संकेत हैं जो ईपीएफओ पर ‘रन’ (बड़े पैमाने पर निकासी) को रोकना चाहती है। वेतनभोगियों को मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को न संभाल पाने की सज़ा मिल रही है।”
कांग्रेस सांसद मनिकम टैगोर ने भी नए नियमों को ‘क्रूरता’ बताते हुए कहा कि ‘पेंशनभोगियों और नौकरी गंवाने वालों को अपनी बचत की ज़रूरत के लिए दंडित किया जा रहा है।’ उन्होंने सवाल किया कि इन नियमों से किसे लाभ हो रहा है, ‘निश्चित रूप से श्रमिकों को नहीं।’
हालांकि, सरकार की ओर से एक वरिष्ठ अधिकारी ने इन बदलावों पर सफाई देते हुए कहा है कि निकासी की अवधि बढ़ाने का उद्देश्य औपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ सुनिश्चित करना है। ईपीएफओ ने यह भी कहा है कि इन बदलावों से निकासी की प्रक्रिया सरल होगी और सदस्य अब अपनी कुल जमा राशि का 100% तक निकाल सकेंगे, बशर्ते 25% का न्यूनतम बैलेंस बना रहे।
