Source The economics Times
नई दिल्ली: गूगल की एआई डिवीज़न डीपमाइंड (DeepMind) ने कैंसर के उपचार के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की है। कंपनी ने ऐलान किया है कि उनकी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ने एक नई कार्यप्रणाली की खोज की है जिससे ऐसे ट्यूमर को ठीक करना आसान हो सकता है जो अब तक इलाज के प्रति प्रतिरोधी माने जाते थे।
यह खोज विशेष रूप से ‘कोल्ड’ ट्यूमर के लिए महत्वपूर्ण है। ‘कोल्ड’ ट्यूमर ऐसे होते हैं जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (immune system) की नज़रों से छिपे रहते हैं, जिससे इम्यूनोथेरेपी (Immunotherapy) जैसे शक्तिशाली उपचार भी उन पर असर नहीं कर पाते। डीपमाइंड के AI मॉडल, Cell2Sentence-Scale 27B (C2S-Scale 27B) ने एक ऐसी दवा की पहचान की है जो इन ‘कोल्ड’ ट्यूमर को ‘हॉट’ बनाने में मदद कर सकती है—यानी उन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए दृश्यमान (visible) बना सकती है।
कैसे काम किया AI ने?
डीपमाइंड ने येल यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर यह रिसर्च की। AI मॉडल को एक तरह से कोशिकाओं की ‘भाषा’ को समझने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इस मॉडल ने 4,000 से अधिक दवाओं का वर्चुअल परीक्षण किया और एक उपन्यास परिकल्पना (novel hypothesis) उत्पन्न की कि कैंसर कोशिकाएं कैसा व्यवहार करती हैं।
AI ने भविष्यवाणी की कि एक ज्ञात दवा सिलमिटासर्टिब (Silmitasertib), जब इंटरफेरॉन (Interferon) की कम खुराक के साथ मिलाई जाती है, तो यह ट्यूमर पर इम्यून-ट्रिगरिंग सिग्नल, जिसे एंटीजन प्रेजेंटेशन (antigen presentation) कहा जाता है, को काफी हद तक बढ़ा सकती है। लैब प्रयोगों में इस भविष्यवाणी की पुष्टि की गई: इस संयोजन ने एंटीजन प्रेजेंटेशन में लगभग 50% की वृद्धि की, जिससे ट्यूमर कोशिकाएं प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए बहुत अधिक ‘दृश्यमान’ हो गईं।
यह सफलता ‘प्रिसिजन ऑन्कोलॉजी’ (Precision Oncology) के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है और कैंसर के बेहतर इलाज के लिए एक नया रास्ता खोलती है। गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने भी इस खोज को ‘विज्ञान में AI के लिए एक मील का पत्थर’ बताया है। इस खोज से उम्मीद जगी है कि भविष्य में इम्यूनोथेरेपी की सफलता दर में काफी सुधार किया जा सकता है।
