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दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (IGI Airport) पर हाल ही में 800 से अधिक उड़ानों के बाधित होने की घटना ने देश के एविएशन सेक्टर में हलचल मचा दी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस अव्यवस्था के पीछे “GPS स्पूफिंग” नाम की एक तकनीक का हाथ बताया जा रहा है, जिसने एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) सिस्टम और पायलटों दोनों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
जीपीएस स्पूफिंग क्या है?
जीपीएस स्पूफिंग एक साइबर अटैक तकनीक है, जिसमें नकली सैटेलाइट सिग्नल भेजकर किसी विमान, जहाज या वाहन के असली लोकेशन डेटा को गलत दिशा में मोड़ा जाता है। सरल शब्दों में, हमलावर GPS रिसीवर को यह भरोसा दिला देते हैं कि वह किसी और जगह पर है, जबकि वास्तव में वह कहीं और होता है।
यह तकनीक सैन्य, सुरक्षा और परिवहन क्षेत्र में गंभीर खतरा मानी जाती है, क्योंकि इससे विमान की नेविगेशन सिस्टम पर सीधा असर पड़ता है।
दिल्ली एयरपोर्ट पर क्या हुआ?
पिछले कुछ हफ्तों में, दिल्ली एयरपोर्ट पर आने-जाने वाली कई उड़ानों में नेविगेशन त्रुटियों, ऑटो-पायलट डिसकनेक्ट और लोकेशन मिसमैच जैसी समस्याएं सामने आईं। इसके चलते 800 से अधिक उड़ानें या तो डिले हुईं या रद्द करनी पड़ीं। एयरलाइंस ने कहा कि कई विमानों को जीपीएस इंटरफेरेंस का सामना करना पड़ा, जिससे लैंडिंग और टेकऑफ शेड्यूल गड़बड़ा गया।
क्या भारत को एटीसी सिस्टम में सुधार की जरूरत है?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के एयर ट्रैफिक कंट्रोल नेटवर्क को अब उन्नत साइबर-डिफेंस सिस्टम की जरूरत है।
एविएशन एक्सपर्ट्स का कहना है कि पारंपरिक रडार और GPS पर अत्यधिक निर्भरता अब खतरा बनती जा रही है।
नई तकनीकें जैसे मल्टी-सोर्स नेविगेशन, इंक्रिप्टेड सिग्नल और एंटी-स्पूफिंग एल्गोरिद्म जरूरी हो गए हैं।
साथ ही, ATC कर्मियों को साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण और रियल-टाइम इंटरफेरेंस मॉनिटरिंग सिस्टम की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
दिल्ली एयरपोर्ट पर हुई घटनाएं यह दर्शाती हैं कि भारत को अब अपनी विमानन सुरक्षा प्रणाली में तकनीकी आधुनिकीकरण लाना होगा। जीपीएस स्पूफिंग जैसे खतरे आने वाले समय में और भी परिष्कृत हो सकते हैं, इसलिए ATC इंफ्रास्ट्रक्चर की ओवरहॉलिंग अब समय की मांग है।
क्या भारत इस खतरे से निपटने के लिए तैयार है, यह आने वाले महीनों में सरकार और DGCA के कदमों से स्पष्ट होगा।
