Source The Hindu
नई दिल्ली: भारत सरकार ने अपनी महत्वपूर्ण दुर्लभ पृथ्वी धातुओं (Rare Earth Metals) के संरक्षण और घरेलू उपयोग को प्राथमिकता देने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। सूत्रों के अनुसार, सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) को जापान के साथ 13 साल पुराने निर्यात समझौते को रोकने के निर्देश दिए हैं। इस कदम का उद्देश्य देश में इन महत्वपूर्ण खनिजों के प्रसंस्करण और मैग्नेट उत्पादन को बढ़ावा देना है, जिससे चीन पर निर्भरता कम हो सके और आत्मनिर्भरता बढ़े।
यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब वैश्विक स्तर पर दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की आपूर्ति श्रृंखला अस्थिर हो गई है, खासकर चीन द्वारा इन तत्वों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण। भारत अब अपने रणनीतिक संसाधनों की रक्षा करने और घरेलू मूल्यवर्धित दुर्लभ पृथ्वी उद्योग को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
जानकारी के मुताबिक, IREL और जापान की टोयोट्सु रेयर अर्थ्स इंडिया (जो टोयोटा त्सुशो की जापानी सहायक कंपनी है) के बीच यह समझौता 2012 में हुआ था। इस समझौते के तहत IREL दुर्लभ तत्वों का खनन करता था, जिन्हें टोयोट्सु जापान को निर्यात करने से पहले संसाधित करता था। इसमें मुख्य रूप से नियोडिमियम शामिल था, जिसका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहन (EV) मोटर के मैग्नेट में होता है।
वित्तीय वर्ष 2024 में, टोयोट्सु ने जापान को 1,000 मीट्रिक टन से अधिक दुर्लभ तत्व भेजे थे, जो IREL के कुल 2,900 टन उत्पादन का लगभग एक तिहाई था। चीन द्वारा निर्यात में कटौती के बाद से भारत में दुर्लभ पृथ्वी धातुओं की घरेलू मांग में तेजी से वृद्धि हुई है।
सरकार के इस कदम से भारत के घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में जहां इन खनिजों का उपयोग महत्वपूर्ण है। यह भारत को वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति श्रृंखला में एक मजबूत स्थिति हासिल करने में भी मदद करेगा। हालांकि, जापान के साथ एक मित्र देश होने के नाते, इस मामले पर राजनयिक स्तर पर बातचीत जारी रहने की संभावना है ताकि दोनों देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित समाधान निकाला जा सके।
