Source The economics Times
नई दिल्ली: केंद्र सरकार देश के बिजली खुदरा बाज़ार को निजी कंपनियों के लिए खोलने की योजना बना रही है। विद्युत मंत्रालय के एक मसौदा विधेयक में यह जानकारी सामने आई है, जिससे अधिकांश राज्यों में सरकारी वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का प्रभुत्व समाप्त होने की संभावना है।
यह कदम बिजली क्षेत्र में एक बड़े सुधार का संकेत है, जिसका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा विकल्प प्रदान करना है। मसौदे के अनुसार, देश भर में अडाणी एंटरप्राइजेज, टाटा पावर, टोरेंट पावर और सीईएससी जैसी निजी कंपनियों को अपने खुदरा परिचालन को मजबूत करने का अवसर मिल सकता है।
वर्तमान में, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, ओडिशा और महाराष्ट्र व गुजरात जैसे औद्योगिक राज्यों सहित कुछ ही क्षेत्रों में निजी वितरण नेटवर्क हैं, जबकि अधिकांश क्षेत्र राज्य के नियंत्रण में हैं और अक्सर गहरे वित्तीय घाटे से जूझ रहे हैं।
मसौदा विधेयक में यह प्रावधान भी है कि एक ही भौगोलिक क्षेत्र में एक से अधिक निजी वितरकों को काम करने की अनुमति दी जाए, जो मौजूदा बिजली अधिनियम में संभव नहीं है। सरकार का मानना है कि यह कदम न केवल उपभोक्ताओं को अपना बिजली प्रदाता चुनने की आज़ादी देगा, बल्कि निजी निवेश को भी आकर्षित करेगा और डिस्कॉम पर बढ़ते वित्तीय तनाव को कम करने में मदद करेगा।
हालांकि, 2022 में भी इसी तरह का एक प्रयास राज्य वितरण कंपनियों के विरोध के कारण रुकावट का सामना करना पड़ा था। इस बार भी, निजीकरण के इस कदम का बिजली क्षेत्र के कर्मचारी संघों द्वारा विरोध किया जा रहा है। जून तक, राज्य की बिजली कंपनियों पर बिजली उत्पादकों का करीब $6.78 बिलियन (लगभग 600 अरब रुपये) बकाया था, जिससे पूरे क्षेत्र में तरलता (लिक्विडिटी) की समस्या पैदा हो गई थी।
इस मसौदा विधेयक का उद्देश्य वितरण क्षेत्र में सुधार लाकर इन वित्तीय और परिचालन चुनौतियों का समाधान करना है।
यह वीडियो उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों के निजीकरण के प्रस्ताव पर उठे विरोध और उससे जुड़े अन्य पहलुओं को दिखाता है, जो भारत में बिजली खुदरा क्षेत्र में निजीकरण के व्यापक मुद्दे से संबंधित है।
