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जापान: हिरोशिमा और नागासाकी के दर्द को अगली पीढ़ी तक पहुँचाना

Source DW

टोक्यो: जापान में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों की 80वीं बरसी पर, उन भयावह यादों को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का प्रयास तेज़ हो गया है। इन हमलों से बचे हुए लोग, जिन्हें ‘हिबाकुशा’ कहा जाता है, अब उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं। उनकी संख्या लगातार कम हो रही है, और इसी के साथ दुनिया को परमाणु युद्ध की भयावहता से रूबरू कराने की ज़िम्मेदारी भी बढ़ रही है।

6 अगस्त, 1945 को हिरोशिमा और उसके तीन दिन बाद नागासाकी पर अमेरिका द्वारा गिराए गए परमाणु बमों ने इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को जन्म दिया था। इन हमलों में लाखों लोग तुरंत मारे गए थे, और जो बच गए उन्हें जीवन भर रेडिएशन से होने वाली बीमारियों, भेदभाव और मानसिक पीड़ा से जूझना पड़ा।

अब, जब हिबाकुशा की औसत उम्र 86 साल से अधिक हो चुकी है, तो जापान में एक नई पीढ़ी इन कहानियों को आगे ले जाने का बीड़ा उठा रही है। युवा स्वयंसेवक और शांति कार्यकर्ता हिबाकुशा के अनुभवों को दर्ज कर रहे हैं, ताकि उनकी दर्दनाक कहानियाँ इतिहास के पन्नों में ही दफ़न न हो जाएँ। इन कहानियों को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, संग्रहालयों और शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से दुनिया भर में पहुँचाया जा रहा है।

हिरोशिमा और नागासाकी के शांति संग्रहालयों में आने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जिनमें विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। ये पर्यटक, जो अक्सर परमाणु हमलों के बारे में सतही जानकारी रखते हैं, हिबाकुशा की व्यक्तिगत कहानियों को सुनकर भावुक हो जाते हैं। एक अमेरिकी पर्यटक ने बताया, “यह देखकर और सुनकर बहुत दुख होता है कि एक फैसले से कितनी तबाही हो सकती है।”

हालांकि, इस बात को लेकर भी चिंता बढ़ रही है कि दुनिया एक बार फिर परमाणु हथियारों के खतरे को कम आंक रही है। हिरोशिमा के मेयर काज़ुमी मात्सुई ने हाल ही में अपने संबोधन में वैश्विक नेताओं को चेतावनी दी कि परमाणु हथियारों को अपने देश की सुरक्षा के लिए ‘अपरिहार्य’ मानना एक गंभीर भूल है। उन्होंने दुनिया के नेताओं से हिरोशिमा आने और त्रासदी के परिणामों को खुद देखने का आग्रह किया।

यह प्रयास केवल जापान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक संदेश है कि परमाणु युद्ध का अंत ही शांति का एकमात्र रास्ता है। हिरोशिमा और नागासाकी के लोग यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि उनके दर्द को अगली पीढ़ी तक पहुँचाया जाए, ताकि दुनिया कभी भी ऐसी त्रासदी को दोबारा न दोहराए।

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