Source Bloomberg
वॉशिंगटन — उतरने वाला कदम: Donald Trump प्रशासन ने बुधवार (22 अक्टूबर 2025) को रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों– Rosneft और Lukoil – पर नए आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। इस कदम का लक्ष्य है कि रूस की युद्ध-यंत्र देखभाल करने वाली स्रोतों से राजस्व निकलने को रोका जाए और Ukraine में युद्ध समाप्ति के लिए रूस पर दबाव बनाया जाए।
प्रमुख बिंदु
प्रतिबंधों के अंतर्गत Rosneft और Lukoil की सभी अमेरिकी संपत्तियों एवं अमेरिकी नियंत्रण वाले हितों पर कार्रवाई की जाएगी।
इस कदम से रूस का तेल निर्यात प्रभावित हो सकता है क्योंकि ये दोनों कंपनियाँ रूस की ऊर्जा निर्यात की रीढ़ हैं।
इस निर्णय के बाद वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में करीब 5% तक की तेजी आई है।
इसके साथ ही चीन की प्रमुख तेल कंपनियों ने रूस से समुंद्री रफ़्तार वाला कच्चा तेल खरीदना कम कर दिया है।
भारत की बड़ी रिफाइनर कंपनियाँ भी अब रूस से आने वाले कच्चे तेल पर पुनर्विचार कर रही हैं।
रूस-परिणाम और प्रतिक्रिया
Vladimir Putin ने इस कार्रवाई को “अनमित्र कार्य” बताया है और कहा है कि यह रूस की नीतियों को नहीं बदलेगा। साथ ही उन्होंने माना कि कुछ आर्थिक क्षति हो सकती है, मगर इसे निर्णायक नहीं कहा जा सकता।
रूस की केंद्रीय बैंक ने इस प्रतिबंध के बाद प्रमुख ब्याज दर में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती कर 16.5% कर दी है—यह संकेत है कि रूस आर्थिक दबाव का अनुमान लगा रहा है।
भारत-चीन पर असर
चीन की राज्य-स्वामित्व वाली तेल कंपनियों ने रूस से समुद्री मार्ग से तेल की खरीदारी फिलहाल रोक दी है, हालांकि पाइपलाइन के माध्यम से आयात जारी रह सकता है। भारत में Reliance Industries ने कहा है कि वह अमेरिकी एवं यूरोपीय प्रतिबंधों के अनुरूप होगा तथा भविष्य में रूस से खरीदारी में कटौती कर सकता है।
यह दोनों देश (भारत और चीन) रूस के सबसे बड़े कच्चे तेल आयातक हैं, इसलिए इन पर पड़ने वाला प्रभाव काफी महत्त्वपूर्ण है।
वैश्विक ऊर्जा बाजार पर असर
विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह प्रतिबंध ठीक से लागू हुआ तो 2-3 मिलियन बैरल प्रति दिन की रूस की निर्यात क्षमता बाजार से हट सकती है। लेकिन, इसके साथ यह सवाल भी है कि अमेरिका एवं उसके साथी कितनी गति से और कितनी कड़ाई से इन नियमों को लागू करेंगे।
आगे क्या हो सकता है?
अगर अमेरिका ‘माध्यमिक प्रतिबंध’- यानी उन कंपनियों/बैंकों पर कार्रवाई जो इन रूसियों से व्यापार करती हैं – लगाता है, तो इ ए शटन यूरोप, भारत, चीन सहित तेल खरीदारों के लिए बड़े जोखिम खड़े कर सकता है।
रूस अपने निर्यात ग्राहकों को बदलने की दिशा में कदम उठा सकता है, जैसे मध्यपूर्व, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका की ओर देखना।
वैश्विक तेल कीमतों में अस्थिरता आ सकती है, विशेषतः अगर रूस की आपूर्ति में कटौती ने तुरंत दूसरी आपूर्ति से संतुलन नहीं मिल पाया।
निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा रूस की शीर्ष तेल कंपनियों पर उठाया गया यह कदम केवल आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक भी है। इसने रूस की युद्ध-यंत्र के लिए धन जुटाने की संभावना को सीधा निशाना बनाया है। हालांकि, इसका वास्तविक असर इस पर निर्भर करेगा कि कितनी जल्दी और कितनी व्यापक रूप से इसे लागू किया जाता है। इसके साथ-साथ भारत जैसे बड़े तेल आयातक देश भी इस नए भू-राजनीतिक परिदृश्य में अपनी नीति-स्थिति फिर से सोचेगा।
अगर आप चाहें, तो मैं इस प्रतिबंध के भारत-विशिष्ट प्रभावों पर एक विश्लेषण भी तैयार कर सकता हूँ।
