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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते,” जिससे यह संकेत मिल रहा है कि भारत सिंधु जल संधि को आंशिक या पूर्ण रूप से निलंबित करने पर विचार कर सकता है।
साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत छह नदियों में से तीन—रावी, ब्यास और सतलुज—का पानी अपने उपयोग में ला सकता है, जबकि अन्य तीन—सिंधु, झेलम और चेनाब—का अधिकांश पानी पाकिस्तान को मिलता है।
पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने और सीमा पर जारी तनाव के कारण भारत सरकार इस संधि की समीक्षा करता रहा है। पीएम मोदी के इस बयान को पाकिस्तान के प्रति एक सख्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब सीमा पर तनाव और आतंकी गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत सिंधु जल संधि को निलंबित करता है तो इससे न केवल पाकिस्तान की जल आपूर्ति प्रभावित होगी, बल्कि दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक समीकरण भी बदल सकते हैं।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत इस संधि की समीक्षा के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहा है, जिसमें पश्चिमी नदियों पर नियंत्रण बढ़ाने की संभावनाएं भी शामिल हैं।
