Source The Hindu
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: हंटिंगटन रोग (Huntington’s Disease) — एक दुर्लभ और घातक न्यूरोलॉजिकल विकार — से जूझ रहे परिवार और वैज्ञानिक आज एक नए जोश और तालमेल के साथ इस बीमारी का मुकाबला कर रहे हैं। इस बीमारी में मस्तिष्क की कोशिकाएं धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होती जाती हैं, जिससे मरीजों में अनियंत्रित हरकतें, भावनात्मक अस्थिरता और स्मृति हानि जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, इस रोग का अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन नई दवाओं और जेनेटिक थैरेपी पर तेजी से काम चल रहा है। अमेरिका और यूरोप के कई चिकित्सा संस्थान अब जीन-संपादन तकनीक (gene-editing technology) का उपयोग करके इस बीमारी की जड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (ICMR) के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में भी ऐसे मामलों की पहचान बढ़ रही है, और समय रहते निदान व सहायता से मरीजों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।
वहीं, प्रभावित परिवारों ने अपने स्तर पर “Hope in Motion” जैसे अभियानों की शुरुआत की है, जिसमें वे संगीत, नृत्य और समूह चिकित्सा के ज़रिए रोगियों को भावनात्मक सहयोग देने का प्रयास कर रहे हैं।
दिल्ली की 42 वर्षीय सीमा अग्रवाल, जिनके पति इस बीमारी से पीड़ित हैं, कहती हैं, “हम हर दिन इसे एक नई चुनौती की तरह लेते हैं। संगीत और परिवार के समर्थन से हमने जीने की नई लय पाई है।”
वैज्ञानिक मानते हैं कि अनुसंधान के बढ़ते प्रयासों और परिवारों की अटूट दृढ़ता से आने वाले वर्षों में हंटिंगटन रोग के इलाज की दिशा में बड़ी प्रगति संभव है।
