SOURCE Deccan Herald
नई दिल्ली: भारतीय उपभोक्ताओं के लिए एक राहत भरी खबर सामने आई है, क्योंकि खुदरा मुद्रास्फीति जून में छह साल के सबसे निचले स्तर 2.1 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के लिए नीतिगत दरों में और ढील देने का मार्ग प्रशस्त करता है, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित यह गिरावट लगातार पांचवें महीने खुदरा मुद्रास्फीति को RBI के 4% के मध्यम अवधि के लक्ष्य से नीचे रखती है, और लगातार दूसरे महीने यह 3% से नीचे बनी हुई है। मई में, सीपीआई-आधारित मुद्रास्फीति 2.82% थी, जबकि पिछले वर्ष के जून (2024) में यह 5.08% थी। यह महत्वपूर्ण गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों और सब्जियों की कीमतों में कमी के कारण हुई है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
विश्लेषकों का मानना है कि मुद्रास्फीति में यह नरमी RBI को ब्याज दरों में कटौती करने के लिए अधिक जगह देगी, जिससे उपभोक्ताओं के लिए ऋण सस्ता हो जाएगा और निवेश को बढ़ावा मिलेगा। यह आर्थिक विकास को गति देने और रोजगार सृजन में मदद कर सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि मानसून की स्थिति और वैश्विक तेल की कीमतों पर लगातार नजर रखनी होगी, क्योंकि ये कारक भविष्य की मुद्रास्फीति दर को प्रभावित कर सकते हैं।
यह गिरावट ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में उपभोक्ताओं के लिए खरीदारी शक्ति को बढ़ा सकती है, जिससे समग्र खपत में वृद्धि होगी। यह केंद्र सरकार के लिए भी एक अच्छी खबर है, क्योंकि इससे लोगों की जेब पर बोझ कम होगा और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा। आने वाले महीनों में RBI के अगले कदम पर सभी की निगाहें टिकी होंगी, क्योंकि यह मुद्रास्फीति के रुझान और आर्थिक विकास की संभावनाओं के बीच संतुलन साधने का प्रयास करेगा।
