Source Reuter
नई दिल्ली: भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। मंगलवार को शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया 88.76 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। इस गिरावट के पीछे कई कारक हैं, लेकिन हाल ही में अमेरिकी प्रशासन द्वारा H-1B वीज़ा शुल्क में की गई भारी वृद्धि को एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।
वीज़ा शुल्क में 1 लाख डॉलर की वृद्धि के फैसले से भारतीय आईटी कंपनियों पर बड़ा वित्तीय बोझ पड़ने की संभावना है। यह खर्च कंपनियों के लिए अमेरिका में कर्मचारियों को तैनात करना महंगा कर देगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से विदेशी निवेशकों की धारणा कमजोर हुई है, जिससे भारतीय शेयर बाज़ार में बिकवाली बढ़ गई है और रुपए पर और दबाव पड़ रहा है।
इस गिरावट का सीधा असर आम आदमी पर भी पड़ेगा। विदेशों से आयात होने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और अन्य उत्पाद महंगे हो जाएंगे। साथ ही, विदेश में पढ़ाई और यात्रा करना भी अधिक महंगा हो जाएगा। हालांकि, कमज़ोर रुपया निर्यातकों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है क्योंकि उन्हें डॉलर के बदले अधिक स्थानीय मुद्रा मिलेगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह गिरावट अमेरिकी व्यापार नीतियों और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के बीच आई है। टैरिफ में वृद्धि और वीज़ा से जुड़ी हालिया खबरों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर दी है।
