Source The Hindu
पडरौना, उत्तर प्रदेश: भारतीय वैज्ञानिकों ने चावल की एक ऐसी किस्म में एक महत्वपूर्ण जीन की पहचान की है जो मिलिंग प्रक्रिया के दौरान अनाज को टूटने से बचाने में मदद करता है। यह खोज चावल उद्योग के लिए एक बड़ी सफलता है, क्योंकि मिलिंग के दौरान चावल का टूटना एक आम समस्या है जिससे काफी नुकसान होता है।
यह जीन, जिसे “ब्रेकिंग रेसिस्टेंस जीन” (Breaking Resistance Gene – BRG) नाम दिया गया है, चावल के दाने की बाहरी परत को मजबूत बनाता है। मजबूत बाहरी परत के कारण, मिलिंग के दौरान कम घर्षण होता है, जिससे चावल कम टूटता है।
इस खोज का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक डॉ. रमेश वर्मा ने बताया, “हमने चावल की विभिन्न किस्मों का अध्ययन किया और पाया कि कुछ किस्मों में प्राकृतिक रूप से यह विशेष जीन मौजूद है। इस जीन की पहचान करके, अब हम ऐसी नई चावल की किस्में विकसित कर सकते हैं जो मिलिंग के दौरान कम टूटेंगी।”
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस खोज से किसानों और मिल मालिकों दोनों को फायदा होगा। किसानों को बेहतर गुणवत्ता वाला चावल मिलेगा, जिससे उन्हें अच्छी कीमत मिल सकेगी। वहीं, मिल मालिकों को मिलिंग के दौरान कम नुकसान होगा, जिससे उनकी लाभप्रदता बढ़ेगी।
यह शोध भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research – ICAR) के सहयोग से किया गया था और इसके निष्कर्ष हाल ही में एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। वैज्ञानिकों की टीम अब इस जीन का उपयोग करके उच्च उपज वाली और टूटने के प्रतिरोधी चावल की नई किस्में विकसित करने पर काम कर रही है।
इस खोज से भारत में चावल उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद है, जो देश की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
