SOURCE Bar and Bench
नई दिल्ली: बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India – ECI) को निर्देश दिया है कि वह मतदाता पहचान के लिए आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी स्वीकार करने पर विचार करे।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमल्य बागची की पीठ ने बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण की समय-सीमा पर सवाल उठाए, हालांकि उन्होंने चुनाव आयोग की संवैधानिक शक्ति पर कोई संदेह व्यक्त नहीं किया। पीठ ने कहा कि यह प्रक्रिया लोकतंत्र की जड़ों और मतदान के अधिकार से जुड़ी है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि मौजूदा प्रक्रिया में आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेजों को स्वीकार नहीं किया जा रहा है, जिससे लाखों योग्य मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं। उनका कहना था कि कई लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या अन्य मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं, जिससे उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने में कठिनाई हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि वह नागरिकता के मुद्दे में क्यों पड़ रहा है, जबकि यह गृह मंत्रालय का कार्यक्षेत्र है। हालांकि, आयोग ने अपनी ओर से स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 326 के तहत भारतीय नागरिक होने की पात्रता को सत्यापित करना उसकी जिम्मेदारी है।
चुनाव आयोग ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि किसी भी व्यक्ति का नाम बिना सुनवाई और नोटिस दिए मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग ने यह भी बताया कि मतदाता सूची में संशोधन एक सामान्य और आवश्यक प्रक्रिया है, और अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी।
मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, तब तक बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश से लाखों मतदाताओं को राहत मिलने की उम्मीद है, जिन्हें आवश्यक दस्तावेजों की कमी के कारण मतदाता सूची से बाहर होने का डर था।
