Source The Hindu
नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि लोकतंत्र की एक शाखा अगर अपने संवैधानिक कर्तव्यों का सही तरीके से पालन नहीं करती है, तो न्यायपालिका चुप नहीं बैठेगी। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों की पीठ ने यह बात कही, जिससे यह संदेश गया कि संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन किसी भी हालत में सहन नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र की तीन प्रमुख शाखाएँ – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका – संविधान के तहत परस्पर संतुलित रहती हैं। यदि किसी भी शाखा की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी होती है या वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल होती है, तो न्यायपालिका का कर्तव्य बनता है कि वह हस्तक्षेप कर उचित निर्देश जारी करे। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि लोकतंत्र की अखंडता को बनाए रखने के लिए न्यायपालिका का सक्रिय रहना आवश्यक है।
इस सख्त टिप्पणी का संबंध हाल ही में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मामले से था, जहां सरकारी तंत्र की निष्क्रियता के चलते नागरिकों के मूल अधिकारों पर सवाल उठे थे। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायपालिका का उद्देश्य केवल विवाद सुलझाना नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करना भी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “लोकतंत्र में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन आवश्यक है। यदि किसी भी शाखा का प्रदर्शन कमजोर होता है, तो संविधान की रक्षा के लिए न्यायपालिका को उचित कदम उठाना होगा।”
इस निर्णय से यह स्पष्ट संदेश गया कि न्यायपालिका लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभाती रहेगी और किसी भी अनुचित कार्यप्रणाली को बर्दाश्त नहीं करेगी।
