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भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देशभर में बढ़ते आवारा कुत्तों के हमलों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। न्यायालय ने कहा कि आवारा कुत्तों की निरंतर बढ़ती उपस्थिति सार्वजनिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बन गई है, खासकर बच्चों और गरीब तबके के लोगों के लिए।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि “कुत्तों के काटने की घटनाएं अब आम हो गई हैं और इसका सबसे बड़ा प्रभाव समाज के कमजोर वर्गों पर पड़ रहा है, जिनके पास इलाज या कानूनी मदद के लिए संसाधन नहीं होते।” अदालत ने राज्यों और नगर निगमों को निर्देश दिया कि वे इस समस्या से निपटने के लिए ठोस और मानवीय कदम उठाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जानवरों के अधिकारों की रक्षा जरूरी है, लेकिन यह नागरिकों की सुरक्षा की कीमत पर नहीं हो सकता। अदालत ने कहा, “संतुलन बनाना आवश्यक है — पशु संरक्षण और सार्वजनिक सुरक्षा दोनों की जिम्मेदारी राज्य की है।”
पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि कई राज्यों में नगर निकायों ने आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण कार्यक्रमों को पर्याप्त रूप से लागू नहीं किया है, जिसके कारण समस्या लगातार बढ़ रही है। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है कि अब तक इस दिशा में क्या कदम उठाए गए हैं।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने उल्लेख किया कि कुत्तों के हमले खासकर छोटे बच्चों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर उचित नीतियां और कार्यान्वयन नहीं किए गए, तो यह “सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातस्थिति” का रूप ले सकता है।
अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर सरकारों की जवाबदेही तय करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा कुत्तों के नियंत्रण के लिए एक समान नीति लागू हो।
