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वाशिंगटन, 21 मई 2025 — अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को ‘गोल्डन डोम’ नामक एक नई मिसाइल रक्षा प्रणाली की घोषणा की, जिसका उद्देश्य चीन और रूस से संभावित मिसाइल खतरों से अमेरिका की रक्षा करना है। इस परियोजना की अनुमानित लागत $175 बिलियन है और इसे 2029 तक पूरी तरह से चालू करने का लक्ष्य रखा गया है।
परियोजना का उद्देश्य और संरचना
‘गोल्डन डोम’ प्रणाली को इज़राइल की ‘आयरन डोम’ से प्रेरित बताया गया है, लेकिन यह अमेरिका के विशाल भूभाग को ध्यान में रखते हुए अधिक व्यापक और उन्नत होगी। इस प्रणाली में सैकड़ों उपग्रहों, अंतरिक्ष-आधारित सेंसर, लेजर हथियारों और मिसाइल इंटरसेप्टरों का उपयोग करके एक बहु-स्तरीय रक्षा कवच तैयार किया जाएगा, जो बैलिस्टिक, क्रूज़ और हाइपरसोनिक मिसाइलों सहित विभिन्न प्रकार के खतरों का मुकाबला कर सकेगा।
नेतृत्व और भागीदारी
इस परियोजना का नेतृत्व यू.एस. स्पेस फोर्स के जनरल माइकल गेटलाइन को सौंपा गया है। इसके अलावा, स्पेसएक्स, पलांटिर और एंडुरिल जैसी प्रमुख तकनीकी कंपनियों को इस परियोजना में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। स्पेसएक्स ने एक “सब्सक्रिप्शन मॉडल” प्रस्तावित किया है, जिसमें सरकार तकनीक के उपयोग के लिए भुगतान करेगी, जिससे परियोजना की लागत और नियंत्रण को लेकर पेंटागन में चिंताएं उत्पन्न हुई हैं।
वित्तीय और राजनीतिक चुनौतियाँ
हालांकि ट्रंप प्रशासन ने इस परियोजना के लिए प्रारंभिक $25 बिलियन की धनराशि का प्रस्ताव रखा है, लेकिन कांग्रेस में इस पर सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। कांग्रेसनल बजट ऑफिस का अनुमान है कि इस प्रणाली की कुल लागत अगले दो दशकों में $542 बिलियन से अधिक हो सकती है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
रूस और चीन ने ‘गोल्डन डोम’ परियोजना की आलोचना की है, इसे “गंभीर रूप से अस्थिर करने वाला” और अंतरिक्ष के सैन्यीकरण की दिशा में एक कदम बताया है। कनाडा ने इस परियोजना में भाग लेने की इच्छा व्यक्त की है, जिससे यह NORAD (नॉर्थ अमेरिकन एयरोस्पेस डिफेंस कमांड) के उन्नयन के साथ संरेखित हो सकता है।
निष्कर्ष
‘गोल्डन डोम’ परियोजना अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो उन्नत तकनीक और अंतरिक्ष-आधारित रक्षा प्रणालियों के माध्यम से देश को आधुनिक मिसाइल खतरों से सुरक्षित रखने का प्रयास है। हालांकि, इसकी उच्च लागत, तकनीकी जटिलता और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया को देखते हुए, इसका सफल कार्यान्वयन कई चुनौतियों से भरा हो सकता है।
