Source TOI
अमेरिका में एक प्रमुख निवेशक के विवादित बयान ने सोशल मीडिया पर नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा है कि “हमें अब न केवल अवैध आप्रवासियों की, बल्कि कानूनी भारतीयों की भी आवश्यकता नहीं है”। उनका मानना है कि H-1B वीज़ा प्रणाली को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए ताकि हर देश के लोग अपने-अपने देशों में रहकर वहीं रोजगार के अवसर विकसित करें।
इस बयान को अमेरिकी टेक सेक्टर और भारतीय आईटी समुदाय दोनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। अमेरिकी निवेशक — जिनका नाम फिलहाल सार्वजनिक बहस में प्रमुखता से लिया जा रहा है — ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “H-1B वीज़ा ने अमेरिकी नौकरी बाजार को नुकसान पहुंचाया है। इसने सस्ते विदेशी श्रमिकों को लाकर अमेरिकी प्रतिभाओं के अवसर कम किए हैं।”
H-1B वीज़ा प्रोग्राम, जो विशेष रूप से टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में विदेशी पेशेवरों को अमेरिका में काम करने की अनुमति देता है, में हर साल बड़ी संख्या में भारतीय इंजीनियर और आईटी विशेषज्ञ शामिल होते हैं। 2024 में जारी आंकड़ों के अनुसार, कुल H-1B वीज़ा में से लगभग 70% भारतीयों के पास जाते हैं।
निवेशक के इस बयान पर भारत में भी तीखी प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं। कई टेक पेशेवरों ने कहा कि यह विचार “संकीर्ण और आर्थिक दृष्टि से गलत” है, क्योंकि भारतीय पेशेवरों ने अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अमेरिकी कंपनियों जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेज़न और मेटा के कई उच्च पदों पर भारतीय मूल के अधिकारी कार्यरत हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि H-1B वीज़ा समाप्त कर दिया गया, तो अमेरिकी नवाचार और टेक उद्योग पर गंभीर असर पड़ेगा।
दूसरी ओर, कुछ अमेरिकी राजनीतिक समूहों और निवेशकों का मानना है कि H-1B प्रणाली “आउटसोर्सिंग का माध्यम” बन गई है, जिससे स्थानीय कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है।
फिलहाल अमेरिकी सरकार की ओर से इस बयान पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि 2026 के अमेरिकी चुनावों के करीब आने के साथ, इमिग्रेशन और रोजगार नीति एक बार फिर प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनने वाली है।
निष्कर्षतः, यह विवाद न केवल वीज़ा नीति पर, बल्कि वैश्विक कार्यबल के भविष्य पर भी गहरी चर्चा को जन्म दे रहा है।
